Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
अभिषेक कांत पाण्डेय
आज महिलाएं खुद फैसले ले रही हैं और क्यों न लें, वे पढ़ी-लिखी हैं, कामयाब हैं, उन्हें अपनी जिंदगी अपनी आजादी से जीने का हक है। आज सिंगल मदर बिना पुरुषों के खुद घर और बाहर की जिम्मेदारी बाखूबी उठा रही हैं। ये जीवन में कामयाब हैं और एक अच्छी मां भी हैं, इन्हें पुरुषों के सहारे की जरूरत नहीं है।
हमारा समाज आज कितना भी आधुनिक हो गया हो, लेकिन भारत में सिंगल मदर होना आसान नहीं है। अकेले एक महिला का जीवन यापन करना और बच्चों की परवरिश करना मुश्किलों से भरा है। सिंगल मदर के लिए सर्वोच्च न्यायालय के हक में अहम फैसला आया है कि सिंगल मदर को अपने बच्चे का कानूनी अभिभावक बनने के लिए बच्चे के पिता का नाम या सहमति की कोई जरूरत नहीं है। यह फैसला ऐसी महिलाओं के लिए राहत भरा है, जो किन्हीं कारणों से सिंगल मदर के रूप में जीवन जी रही हैं। लेकिन आज भी हमारा समाज सिंगल मदर को अच्छी निगाहों से नहीं देखता है। सामाज के दकियानूसी खयाल वाले कुछ ठेकेदार, अकेले जीने वाली महिलाओं के हक की बात पर उनके राहों में हमेशा कांटे बोते रहे हैं। सवाल यह उठता है कि महिलाएं हमेशा पुरुषों के मुताबिक क्यों चले, तलाकशुदा महिला या विधवा महिला या अविवाहित महिला का अपना कोई जीवन नहीं है, उन्हें अपने बच्चे की परवरिश का कोई अधिकार नहीं है। हमारा कानून भी इन महिलाओं की आजादी और हक की बात करता है, तो समाज की सोच में बदलाव क्यों नहीं आ रहा है। वहीं आज आधुनिकता के इस दौर में सामाजिक ताने-बाने में, काम करने के तरीके में और आधुनिक जीवनशैली में बहुत बदलाव आया है। इसलिए महिलाओं को भी पुरुषों के सामान अधिकार दिया जाना जरूरी है।
सुष्मिता सेन सिंगल मदर के लिए मिसाल
सुष्मिता सेन 39 साल की हैं और अभी तक शादी नहीं किया है। कामयाबी की सिढ़ियां चढ़ते वक्त जब मिस यूनिवर्स का खिताब उन्हें मिला तो वर्ष 2००० में सुष्मिता ने अपनी पहली बेटी रिनी को गोद लिया और इसके दस साल बाद दूसरी बेटी अलीशा को गोद लिया। उनका मानना है कि बच्चे के लिए बिना शर्त प्यार ही मायने रखता है। इससे मतलब नहीं कि वह आपके पेट से निकला है या दिल से। वे बताती हैं कि अकेले होने का मतलब यह नहीं कि आप अवसाद में रहें। सुष्मिता ने एक दफा 22 कैरट की डायमंड रिग ली तो यह अफवाह उड़ी कि वह सगाई करने जा रही हैं। इस पर उन्होंने कहा था कि मुझे हीरे खरीदने के लिए किसी पुरुष की जरूरत नहीं है। मैं इसके लिए सक्षम हूं। वह मानती हैं कि हमें अपनी स्वतंत्रता पर गर्व करना चाहिए और खुद का खयाल रखने से चूकना नहीं चाहिए।
सुष्मिता सेन अर्थिक रूप से संपन्न और कामयाब महिला हैं, उन्हें अपने फैसले लेने के लिए किसी के दबाव और जोरजबरदस्ती की जरूरत नहीं है। उन्होंने अविवाहित रहते हुए दो बच्चियों को गोद लेकर इस समाज के सामने खुशहाल जीवन का मिसाल रखा है।
खुश हैं अपनी जिंदगी से दीपाली
25 साल की दीपाली मुबंई में अपने चार साल के बेटे के साथ एक कमरे के मकान में रहती हैं। वह अपने बच्चे की परवरिश खुद करती हैं, वह घरों में सर्वेंट का और शादी के सीजन में वेट्रेस का काम भी करती हैं। उन्होंने पति के उत्पीड़न से तंग आकर तलाक ले लिया है। वहीं मायके वालों ने उन्हें अपने साथ नहीं रखा। दीपाली बताती हैं कि वह अपने पति के बैगेर जीना सीख चुकी है। उस नर्क भरे जीवन से मेरा यह जीवन अच्छा है, मेरे पति मुझे मारते-पीटते थे, मैं ऐसी जिंदगी से तंग आ गई थी। अब दीपाली अकेली हैं और सिंगल मदर की लाइफ जी रही हैं। उनकी मैरिज लाइफ दुखों से भरी थी, इसीलिए उन्होंने तलाक लेने का फैसला लिया था। वहीं अब उनके जीने का कारण उनका बेटा है, उसकी जिंदगी संवारने के लिए दीपाली मेहनत करती हैं। दो वक्त की रोटी कमाने के लिए दीपाली को बहुत संघर्ष करना पड़ता है, इसके बावजूद वो अपनी इस जिंदगी से बहुत खुश हैं। दीपाली बताती हैं कि उन जैसी तालाकशुदा महिला को अकेले रहने पर खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। शुरू में आस-पड़ोस के लोगों का व्यवहार उनके प्रति ऐसा रहा, जैसे उन्होंने कोई गुनाह किया है, लेकिन बाद में सब ठीक हो गया। दीपाली ने अपने काम और हौसले से जीने की नई ललक पैदा की है। यही कारण है कि वे मेहनत करके अपने चार साल के बच्चे को अच्छी शिक्षा देना चाहती हैं ताकि उनक बेटा बेहतर इंसान बन सके।
दीपाली के लिए सिंगल वूमेन बनने का फैसला बहुत मुश्किल भरा इसीलिए रहा कि वह बहुत पढ़ी-लिखी नहीं हैं और न ही वह कोई सेलिब्रिटी हैं। वहीं टीवी और फिल्मों की ग्ल्ौमर की दुनिया में तलाक आम बात है। ऐसी कामयाब महिलाएं या सेलिब्रिटी जो जीवन साथी के साथ एडजस्ट नहीं कर पाते हैं तो उनके लिए सिंगल वूमेन बनने का फैसला लेना आसान होता है।
बिन ब्याही मां नीना गुप्ता
हिंदी फिल्मों की एक्ट्रेस नीना गुप्ता 9० के दशक में बिन ब्याही मां बनीं। हालांकि उनकी राय उनकी व्यावहारिक जिंदगी से बिल्कुल उलट है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि शादी से पहले बच्चा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरी बेटी हमारे(विवियन रिचड्र्स) के प्यार की निशानी है। दरअसल नीना गुप्ता ने जो किया, शायद उसकी सलाह वे दूसरों को नहीं देना चाहतीं। वे कहती हैं कि हमारे यहां सिगल मदर बनना बहुत बड़ी चुनौती है। लेकिन उनके लिए बिन ब्याही मां बनने का फैसला लेना इसलिए आसान रहा कि वे कामयाब और आर्थिक रूप से संपन्न हैं। यही कारण है कि नीना गुप्ता अपनी बेटी की शानदार परवरिश कर रही हैं। विवियन रिचड्र्स से दिल टूटने के बाद नीना गुप्ता लंबे समय से अकेले रह रही थीं, उन्हें अपनी जिंदगी में जीवनसाथी की जरूरत महसूस हुई। इसीलिए साल 2००8 में दिल्ली के रहने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट विवेक मेहरा से शादी कर लिया।
पुरुषों की नहीं है जरूरत
आज हम तेजी से तरक्की कर रहे हैं, हमारी सोच बदल रही है। इसके बावजूद हमारे समाज में आज भी बिन ब्याह के मां बनना समाज को स्वीकार्य नहीं है। वहीं कई महिलाएं सामाजिक विरोध के चलते अकेली मां बनती हैं। लेकिन उन्हें सारी जिंदगी दूसरों के कटाक्ष का सामना करना पड़ता है। गीत ओबेराय या सुजाता शंकर ही नहीं बल्कि ऐसी सैकड़ों महिलाएं हैं, जो सिगल मदर हैं। ये महिलाएं आर्थिक रूप से सफल हैं, पुरुषों की जरूरत उन्हें महसूस नहीं होती। लेकिन समाज की निगाहें उनसे बार-बार यही कहती है कि वह असफल हैं। शायद इसीलिए कोई भी पुरुष उनकी जिंदगी में नहीं है। वैसे उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। आखिर जिंदगी उनकी है और फैसला उनका है। तलाकशुदा समिता बैंक में क्लर्क हैं, कहती हैं कि मुझे अपनी बेटी की बेहतर परवरिश के लिए किसी मर्द की जरूरत नहीं है। वे इस बात से भी खुश है कि कम से कम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हर फार्म में पिता का नाम भरना, अब जरूरी नहीं है। क्या जिनके पिता नहीं होते, वह हायर, एजुकेशन हासिल नहीं कर सकते? क्या पिता का नाम होना इतना जरूरी है? कहने की बात यह है कि महिलाएं अब खुलकर सामने आ रही हैं। अपने बच्चों की परवरिश के लिए पिता के मुहर की उन्हें जरूरत महसूस नहीं होती है।
हमारा समाज आज कितना भी आधुनिक हो गया हो, लेकिन भारत में सिंगल मदर होना आसान नहीं है। अकेले एक महिला का जीवन यापन करना और बच्चों की परवरिश करना मुश्किलों से भरा है। सिंगल मदर के लिए सर्वोच्च न्यायालय के हक में अहम फैसला आया है कि सिंगल मदर को अपने बच्चे का कानूनी अभिभावक बनने के लिए बच्चे के पिता का नाम या सहमति की कोई जरूरत नहीं है। यह फैसला ऐसी महिलाओं के लिए राहत भरा है, जो किन्हीं कारणों से सिंगल मदर के रूप में जीवन जी रही हैं। लेकिन आज भी हमारा समाज सिंगल मदर को अच्छी निगाहों से नहीं देखता है। सामाज के दकियानूसी खयाल वाले कुछ ठेकेदार, अकेले जीने वाली महिलाओं के हक की बात पर उनके राहों में हमेशा कांटे बोते रहे हैं। सवाल यह उठता है कि महिलाएं हमेशा पुरुषों के मुताबिक क्यों चले, तलाकशुदा महिला या विधवा महिला या अविवाहित महिला का अपना कोई जीवन नहीं है, उन्हें अपने बच्चे की परवरिश का कोई अधिकार नहीं है। हमारा कानून भी इन महिलाओं की आजादी और हक की बात करता है, तो समाज की सोच में बदलाव क्यों नहीं आ रहा है। वहीं आज आधुनिकता के इस दौर में सामाजिक ताने-बाने में, काम करने के तरीके में और आधुनिक जीवनशैली में बहुत बदलाव आया है। इसलिए महिलाओं को भी पुरुषों के सामान अधिकार दिया जाना जरूरी है।
सुष्मिता सेन सिंगल मदर के लिए मिसाल
सुष्मिता सेन 39 साल की हैं और अभी तक शादी नहीं किया है। कामयाबी की सिढ़ियां चढ़ते वक्त जब मिस यूनिवर्स का खिताब उन्हें मिला तो वर्ष 2००० में सुष्मिता ने अपनी पहली बेटी रिनी को गोद लिया और इसके दस साल बाद दूसरी बेटी अलीशा को गोद लिया। उनका मानना है कि बच्चे के लिए बिना शर्त प्यार ही मायने रखता है। इससे मतलब नहीं कि वह आपके पेट से निकला है या दिल से। वे बताती हैं कि अकेले होने का मतलब यह नहीं कि आप अवसाद में रहें। सुष्मिता ने एक दफा 22 कैरट की डायमंड रिग ली तो यह अफवाह उड़ी कि वह सगाई करने जा रही हैं। इस पर उन्होंने कहा था कि मुझे हीरे खरीदने के लिए किसी पुरुष की जरूरत नहीं है। मैं इसके लिए सक्षम हूं। वह मानती हैं कि हमें अपनी स्वतंत्रता पर गर्व करना चाहिए और खुद का खयाल रखने से चूकना नहीं चाहिए।
सुष्मिता सेन अर्थिक रूप से संपन्न और कामयाब महिला हैं, उन्हें अपने फैसले लेने के लिए किसी के दबाव और जोरजबरदस्ती की जरूरत नहीं है। उन्होंने अविवाहित रहते हुए दो बच्चियों को गोद लेकर इस समाज के सामने खुशहाल जीवन का मिसाल रखा है।
खुश हैं अपनी जिंदगी से दीपाली
25 साल की दीपाली मुबंई में अपने चार साल के बेटे के साथ एक कमरे के मकान में रहती हैं। वह अपने बच्चे की परवरिश खुद करती हैं, वह घरों में सर्वेंट का और शादी के सीजन में वेट्रेस का काम भी करती हैं। उन्होंने पति के उत्पीड़न से तंग आकर तलाक ले लिया है। वहीं मायके वालों ने उन्हें अपने साथ नहीं रखा। दीपाली बताती हैं कि वह अपने पति के बैगेर जीना सीख चुकी है। उस नर्क भरे जीवन से मेरा यह जीवन अच्छा है, मेरे पति मुझे मारते-पीटते थे, मैं ऐसी जिंदगी से तंग आ गई थी। अब दीपाली अकेली हैं और सिंगल मदर की लाइफ जी रही हैं। उनकी मैरिज लाइफ दुखों से भरी थी, इसीलिए उन्होंने तलाक लेने का फैसला लिया था। वहीं अब उनके जीने का कारण उनका बेटा है, उसकी जिंदगी संवारने के लिए दीपाली मेहनत करती हैं। दो वक्त की रोटी कमाने के लिए दीपाली को बहुत संघर्ष करना पड़ता है, इसके बावजूद वो अपनी इस जिंदगी से बहुत खुश हैं। दीपाली बताती हैं कि उन जैसी तालाकशुदा महिला को अकेले रहने पर खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। शुरू में आस-पड़ोस के लोगों का व्यवहार उनके प्रति ऐसा रहा, जैसे उन्होंने कोई गुनाह किया है, लेकिन बाद में सब ठीक हो गया। दीपाली ने अपने काम और हौसले से जीने की नई ललक पैदा की है। यही कारण है कि वे मेहनत करके अपने चार साल के बच्चे को अच्छी शिक्षा देना चाहती हैं ताकि उनक बेटा बेहतर इंसान बन सके।
दीपाली के लिए सिंगल वूमेन बनने का फैसला बहुत मुश्किल भरा इसीलिए रहा कि वह बहुत पढ़ी-लिखी नहीं हैं और न ही वह कोई सेलिब्रिटी हैं। वहीं टीवी और फिल्मों की ग्ल्ौमर की दुनिया में तलाक आम बात है। ऐसी कामयाब महिलाएं या सेलिब्रिटी जो जीवन साथी के साथ एडजस्ट नहीं कर पाते हैं तो उनके लिए सिंगल वूमेन बनने का फैसला लेना आसान होता है।
बिन ब्याही मां नीना गुप्ता
हिंदी फिल्मों की एक्ट्रेस नीना गुप्ता 9० के दशक में बिन ब्याही मां बनीं। हालांकि उनकी राय उनकी व्यावहारिक जिंदगी से बिल्कुल उलट है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि शादी से पहले बच्चा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरी बेटी हमारे(विवियन रिचड्र्स) के प्यार की निशानी है। दरअसल नीना गुप्ता ने जो किया, शायद उसकी सलाह वे दूसरों को नहीं देना चाहतीं। वे कहती हैं कि हमारे यहां सिगल मदर बनना बहुत बड़ी चुनौती है। लेकिन उनके लिए बिन ब्याही मां बनने का फैसला लेना इसलिए आसान रहा कि वे कामयाब और आर्थिक रूप से संपन्न हैं। यही कारण है कि नीना गुप्ता अपनी बेटी की शानदार परवरिश कर रही हैं। विवियन रिचड्र्स से दिल टूटने के बाद नीना गुप्ता लंबे समय से अकेले रह रही थीं, उन्हें अपनी जिंदगी में जीवनसाथी की जरूरत महसूस हुई। इसीलिए साल 2००8 में दिल्ली के रहने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट विवेक मेहरा से शादी कर लिया।
पुरुषों की नहीं है जरूरत
आज हम तेजी से तरक्की कर रहे हैं, हमारी सोच बदल रही है। इसके बावजूद हमारे समाज में आज भी बिन ब्याह के मां बनना समाज को स्वीकार्य नहीं है। वहीं कई महिलाएं सामाजिक विरोध के चलते अकेली मां बनती हैं। लेकिन उन्हें सारी जिंदगी दूसरों के कटाक्ष का सामना करना पड़ता है। गीत ओबेराय या सुजाता शंकर ही नहीं बल्कि ऐसी सैकड़ों महिलाएं हैं, जो सिगल मदर हैं। ये महिलाएं आर्थिक रूप से सफल हैं, पुरुषों की जरूरत उन्हें महसूस नहीं होती। लेकिन समाज की निगाहें उनसे बार-बार यही कहती है कि वह असफल हैं। शायद इसीलिए कोई भी पुरुष उनकी जिंदगी में नहीं है। वैसे उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। आखिर जिंदगी उनकी है और फैसला उनका है। तलाकशुदा समिता बैंक में क्लर्क हैं, कहती हैं कि मुझे अपनी बेटी की बेहतर परवरिश के लिए किसी मर्द की जरूरत नहीं है। वे इस बात से भी खुश है कि कम से कम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हर फार्म में पिता का नाम भरना, अब जरूरी नहीं है। क्या जिनके पिता नहीं होते, वह हायर, एजुकेशन हासिल नहीं कर सकते? क्या पिता का नाम होना इतना जरूरी है? कहने की बात यह है कि महिलाएं अब खुलकर सामने आ रही हैं। अपने बच्चों की परवरिश के लिए पिता के मुहर की उन्हें जरूरत महसूस नहीं होती है।
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