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मे उनमे इनमे मै मे bindu (अनुस्वार) या chandrabindu (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता

  Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार))  या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है।  Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं

शिक्षिका रंजना अवस्थी ने शिक्षा में पढ़ाने के तरीके में नये प्रयोग कर, सँवार दिया बच्चों का भविष्य

संपादन
अभिषेक कांत पांडेय

नई पहल
 नए भारत की तस्वीर, बदल रहा है-सरकारी स्कूल। आइए सुनाते हैं एक ऐसे सरकारी स्कूल की  शिक्षिका की कहानी जिसने पढ़ाने के तरीके में बदलाव करके बच्चों में पढ़ने की ललक पैदा की। 
फतेहपुर के प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका रंजना अवस्थी ने पढ़ाने के लिए नवाचार का प्रयोग कर बच्चों की बहुमुखी प्रतिभा को निखारा है।  उनका नया प्रयोग आसपास के क्षेत्रों में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।  अभिभावकों ने अपने बच्चों का प्रवेश सरकारी स्कूल में करवाने का फैसला लिया।  उनके नए प्रयोग शिक्षकों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बना।
 आइए मिलते हैं सहायक अध्यापिका  श्रीमती रंजना अवस्थी जी से।
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेंती के सादात विकास खण्ड-भिटौरा  में पढ़ाती हैं। आइए जानते हैं उन्हीं की जुबानी उनकी कहानी-

  "मेरी नियुक्ति नियुक्ति 23 मार्च, 1999 को प्राथमिक विद्यालय चक काजीपुर, विकास खण्ड- असोथर, जिला-फतेहपुर के अति पिछड़े इलाके में हुई। जो मेरी इच्छा के विरुद्ध थी, पर मम्मी पापा के कहने पर जब तक कहीं औऱ नियुक्ति नहीं होती तब तक कर लो फिर छोङ देना।
 मैं टीचर नहीं बनना चाहती थी, पर मैने वहाँ देखा कि बच्चे पढ़नाचाहते थे, वो सीखना चाहते थे। ये मेरे लिए बहुत ही अच्छी बात थी। मैंने उनके साथ मित्रवत व्यवहार किया खेल खेल और बातचीत के जरिए पढ़ाया। बच्चों के निश्चल स्वभाव व उनके प्यार ने  ऐसा बांधा कि मैं भूल गई कि मुझे शिक्षक नहीं बनना था।  और फिर उनके लिए मैंने पढ़ाने के लिए मैंने नई सोच और नए तरीके  अपनाना शुरू किया।

2002 में प्रथमिक विद्यालय नरतौली विकास खण्ड बहुआ में स्थानान्तरण के उपरांत आयी। इस विद्यालय का शैक्षिक माहौल बहुत ही अच्छा था। हेड मास्टर श्री सिवाधार जी एक अनुशासन प्रिय व आदर्श अध्यापक थे। उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। शैक्षिक माहौल अच्छा था, इसलिए मैंने वहाँ प्रार्थना के बाद विचार औऱ प्रेरक प्रसंग पहले अध्यापकों द्वारा फिर बच्चों को कहने के लिए प्रोत्साहित किया। योग व स्काउट तालियों का प्रयोग बहुत ही अच्छा साबित हुआ। अभी तक मैंने किसी भी अभिभावक से संपर्क नहीं किया था, लेकिन बच्चों के माध्यम से मैं हर घर की प्रिय बन गई थी। बच्चों की अच्छी आदतें व जो प्रेरक प्रसंग प्रार्थना के समय उनको सुनाये जाते थे, उसकी चर्चा वो अपने घर में करते थे। इसी बीच विद्यालय में पुस्तकालय के लिए पुस्तकें व बच्चों के लिए झूले आएं। पुस्तकालय का प्रभार मुझे मिला। पुस्तकालय की किताबों ने मेरे लिए शिक्षा में नवाचार लाने के लिए संजीवनीवटी का कार्य किया। इन  किताबों के माध्यम से मैंने बच्चों से चित्र एवं छोटे-छोटे लेख लिखवाने शुरू किये। बच्चों बच्चों के लेखन में और उनके विचार में अच्छा खासा परिवर्तन आया।
 राष्ट्रीय पर्वों में बच्चे अपने आप से नाटक लिखकर उसका मंचन करने लगे। मुझे आज भी याद है, जैसे- 'माँ की ममता', 'हंस किसका', 'फलों का राजा कौन', 'तक धिनक धिन-धिन' इत्यादि नाटक बच्चों द्वारा खेला गया।
2008 में मेरा प्रोमोशन यू०पी०एस० बेती सादात विकास खण्ड- भिटौरा में विज्ञान शिक्षिका के रूप में हुआ। मैं जिस विद्यालय से आई थी, उसकी तुलना में बच्चों का मिजाज अच्छा नहीं था। एक किशोरवय वर्ग का अक्खड़पन, कहना न मानना, बात न सुनना जैसी बच्चों की आदत में शुमार ये कमियां थीं पर मैंने उनसे दोस्ताना व्यवहार करके पढ़ाने के तरीके में बदलाव लाया।
लेकिन यहाँ के बच्चों के लिए विचार सुनना ही कठिन था, तो बोलना तो बहुत दूर की बात थी। विद्यालय का भौतिक परिवेश भी अच्छा नहीं था।
विद्यालय में न तो चारदीवारी थीं,  न तो गेट था  ऊपर से  फर्श टूटा हुआ था।  हमने बच्चों के साथ मिलकर फर्श को बैठने लायक बनाया। क्योंकि यही मेरी कर्मभूमि भी है।
प्रार्थनास्थल को समतल व व्यवस्थित किया गया।
राष्ट्रीय पर्वो के उपलक्ष पर विद्यालय की साफ सफाई से विद्यालय की रंगत बदल जाती थी। बच्चों औऱ मेरे प्रयास को देखते हुए खण्ड शिक्षा अधिकारी ने विद्यालय के लिए धन आवंटित कराया, जिससे विद्यालय का  सुंदरीकरण किया गया। आज विद्यालय में पेयजल आपूर्ति, शौचालय, पंखे, जूते-चप्पल की रैक व किचन गार्डन आदि की व्यवस्था है।
 बच्चों के लिए शैक्षिक माहौल बनाने के लिए उन्हें अपना गुल्लक बनाने के लिए तैयार किया क्योंकि उनके पास न कापी, न पेन, न पेन्सिल, न रबर कुछ रहता ही नहीं था। माता- पिता से पैसे मांगने पर मार व डांट पड़ती थीं। मैंने उन्हें  बताया कि गुल्लक से वह अपनी इन जरूरत को पूरा कर लेंगे।
विज्ञान शिक्षिका होने के नाते बच्चों को मैंने प्रयोग करके, कुछ कविता के रूप में व नाटक के रूप में पाठ को पढ़ाना शुरू किया, जिससे विद्यालय का वातावरण पठन-पाठन वाला हो गया।

  रद्दी कागज से चित्र व विज्ञान के मॉडल बनाना शुरू किया। बच्चे अब पढ़ाई में रुचि लेने लगे थे। जो पहले सुनते ही नहीं थे, अब वह बात भी मानने लगे थे।
प्रत्येक शनिवार को पढ़ाए गये पाठ का प्रस्तुतीकरण बच्चों द्वारा किया जाने लगा। भाग लेने वाले बच्चों को स्कार भी दिया जाता था।
विद्यालय में विज्ञान प्रदर्शनी  लगवाई गई। गाँव वाले अपने बच्चों के मॉडल चित्र व प्रस्तुतीकरण देख कर गद्गगद हो रहे थे। हमारे विद्यालय के बच्चे राज्य स्तरीय प्रतियोगिता लखनऊ तक गए।
मैंने विद्यालय में एक दीवार पत्रिका का  निर्माण कराया। बच्चों में से ही किसी को सम्पादक, चित्रकार व संकलनकर्ता आदि के पद दिये औऱ कार्यशाला को घण्टे चलाने के लिए समय दिया। दीवार पत्रिका का शुभारंभ शिक्षक दिवस को श्री प्रवीण त्रिवेदी जी प्राइमरी का मास्टर डॉट कॉम जी द्वारा कराया।
जयन्ती व त्योहारों के अवसर में उनके सांस्कृतिक महत्व की जानकारी व कार्यक्रम का आयोजन किया जाने लगा।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान के लिए गीत प्रहसन आदि कर जागरूकता फैलाने का कार्य किया।
यातायात नियमों के लिए नुक्कड़ नाटकों का प्रयोग किया। 
"सुनो सुनो सब ध्यान से तुम हमारी बात।                                    गाड़ी चलाते समय न करो मोबाइल से बात।                          सुनो सुनो सब ध्यान से तुम हमारी बात                                     हेलमेट  फ़ैशन बन जाये औऱ रहे हमेशा साथ।"
हर बच्चा अपने जन्मदिन पर एक पौधा लगता हैं।
अपना जन्मदिवस कार्ड स्वयं बनाता है और उसमें अच्छी आदत अपनाने एवं बुरी आदत छोड़ने का वादा लिखता है।
विद्यालय में मीनामंत्री मण्डल सक्रिय है।
 मेरा विद्यालय आर्दश विद्यालय के लिए चयनित किया गया है।"

साभार
श्रीमती रंजना अवस्थी
सहायक अध्यापिका
पू०मा०वि० बेंती सादात,
भिटौरा, फ़तेहपुर।
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