Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
राईट टू एजुकेशन एक्ट के बाद टेट अनिवार्य अहर्ता परीक्षा है। टेट कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। टेट के बाद शिक्षा मे कैरियर का अवसर युवाओ के पास है। मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान में टीचर की भरती प्रक्रिया विवादित रही। सही शिक्षा नीति नही होने के कारण मामला न्यायालय में गया। अखबारों में शिक्षक भरती की ख़बरें अखबार में अपना स्थान बना रही है, यहाँ लाखों बेरोजगार इस लाइन में है। टेट परीक्षा और भरती की प्रक्रिया के विवादित होते ही हर अख़बार में खबर बन रही है। पात्रता परीक्षा के लिए अर्हता क्या है? टीचर की भर्ती में चयन का अधार शैक्षिक हो की टेट मेरिट या कोई प्रतियोगी परीक्षा इस पर बहस कम होती है।
बढ़ी रटने व होमवर्क की प्रवृति
इस प्रतियोगिता के युग में जहाँ पर अलग अलग बोर्ड और यूनिवर्सिटी है जिनके अंक देने की अलग अलग परिपाटी है। अगर शैक्षिक रिकॉर्ड को देखकर ही केवल टीचर बना दिया जाये तो रचनात्मकता का क्या होगा। आज जहाँ वैश्विकरण के वजह से विज्ञान में भी क्रिएटिव सोच को महत्त्व दिया जाने लागा है वहीं अमेरिका जैसे विकसित देश अब अपने पाठ्यक्रम चाहे वह विज्ञानं हो या कला , गणित जैसे बोझिल समझने वाले विषय यहाँ भी रचनात्मकता को महत्त्व दिया जाने लगा है लेकिन हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में केवल रटने की प्रवृति और होमवर्क देने की परम्परा बन गयी है। पिछले दो दशको से रटंत प्रशनो के सहारे बोर्ड व यूनिवर्सिटी की परीक्षा पास करने वाले प्राइवेट संस्थान में नौकरी पाने में असफलता ही हाथ लग रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हमरे यूनिवर्सिटी से पास ग्रेजुएट में 70 परसेंट नौकरी पाने के लायक नहीं है। जबकि इसके अलग भारत में ही कुछ यूनिवर्सिटी स्किल ग्रेजुएट बना रही है। इस तरह की यूनिवर्सिटी की संख्या गिनी चुनी है। यहाँ पर अंको से अधिक दक्ष बनाने में विश्वाश रखती है।
दौर है रचनात्मकता का
रचनात्मकत के महत्त्व को समझाते हुए सीबीएससी बोर्ड सतत मूल्यांकन और सभी विषयों में रचनात्मकता को महत्व दे रही है। केवल एकेडमिक के अंको से चयन से दक्ष शिक्षकों का चयन कर पाना मुश्किल है। जबकि टेट की अवधारणा है रचनात्मक एवं दक्ष बीएडधारी ही शिक्षक बने।राईट टू एजुकेशन एक्ट लागू करने का मकसद ही यही है कि योग्य टीचर मिले। जाहिर है कि पिछले एक दशकों से शिक्षा का निजीकरण हुआ। इधर के एक दशक से कुछ यूनिवर्सिटी, कालेज डिग्री बांटने की दूकान बन कर रह गई हैं इसीलिए टेट यानि शिक्षक पात्रता परीक्षा को अनिवार्य किया गया।
टेट मेरिट ही सही
किसी देश के भविष्य निर्माता शिक्षक ही होता है इसलिए टेट एक छन्नी है जहाँ योग्य और कुशल टीचर के चयन में सहायक है। अगर इस फ़िल्टर को हटा दिया गया तो उच्च गुणवता की शिक्षा की बात बेईमानी साबित होगी। शिक्षक भरती में टेट की मेरिट के चयन से उच्च गुणवता वाले टीचर मिल जाएँगे।
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