Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्यो...
अभिषेक कांत पाण्डेय
सकारात्मक सोच जीवन में रंग भरता है, वहीं नकारात्मक सोच जीवन में निराशा उत्पन्न करता है। क्या आपने कभी सोचा कि मन में सबसे अधिक नकारात्मक सोच क्यों आता है। थिंकिंग रिसर्च में भी यही प्रमाणित हुआ है कि हमारे कार्य नकारात्मक ऊर्जा से प्रेरित होते हैं। नकरात्मक सोच हमें आनंद और स्वस्थ जीवन से दूर ले जाती है। दिमाग को समझाएं और सकरात्मक सोच से प्रेरित रहें, देखिए जीवन में जीवंतता दौड़ी चली आएगी।
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आप हमेशा सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को ही पसंद करते हैं। जब कोई व्यक्ति नया काम शुरू करता है तो सकारात्मक सोच लेकर चलता है। वहीं जब नकारात्मक सोच रखने वाला कोई व्यक्ति आपके कार्य की सफलता पर संदेह उत्पन्न करता है और कार्य को मुश्किल भरा बताता है तब आप उसके विचारों की नकारात्मक ऊर्जा से दूर रहने की कोशिश करते हैं। लेकिन उसके बाद आप में नकारात्मक सोच पैदा होने लगती है कि सफलता मिलेगी कि नहीं? ये संशय कैसे आता है, रिसर्चरों ने इस रहस्य से पर्दा उठाया है। यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन ने रिसर्च में पाया कि हमरे दिमाग में आमतौर पर एक दिन में करीब 5० हजार विचार आते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 7० प्रतिशत से 8० प्रतिशत विचार नकारात्मक होते हैं। गणना करें तो एक दिन में करीब 4० हजार और एक साल में करीब 1 करोड़ 46 लाख नकारात्मक विचार आते हैं। अब यदि आप यह कहें कि दूसरों की तुलना में आप 2० प्रतिशत सकारात्मक हैं, तो भी एक दिन में 2० हजार नकारात्मक विचार होंगे, जो नि:संदहे आवश्यकता से बहुत अधिक हैं। अब सवाल यह उठता है कि नकारात्मक विचार इतना अधिक आता क्यों है?
नकारात्मक विचार क्यों आता है
आदिकाल में मनुष्य गुफाओं में रहता था, जंगली जानवर और दैवीय आपदा से अतंकित रहता था, तब यही नकारात्मक सोच उसे उन कठिन परिस्थितियों से सचेत करती थी, जो जैविक विकास के क्रम में स्वयं को जिंदा रखने के लिए प्राकृतिक प्रदत्त थी। दिमाग हमेशा तथ्यों और कल्पनाओं के आधार पर नकारात्मक सोच पैदा करता है, जिससे उस समय के मनुष्यों को फायदा मिलता था। वर्तमान में मनुष्य में जिनेटिकली नकारात्मक विचार इसी कारण से आते हैं। रिसर्च में भी यह बात सामने आई कि नकारात्मक विचार और भाव दिमाग को खास निर्णय लेने के लिए उकसाते हैं। ये विचार मन पर कब्जा करके दूसरे विचारों को आने से रोक देते हैं। हम केवल खुद को बचाने पर फोकस होकर फैसला लेने लगते हैं। नकरात्मक विचार के हावी होने के कारण हम संकट के समय जान नहीं पाते कि स्थितियां उतनी बुरी नहीं हैं, जितनी दिख रही हैं। संकट को पहचानने या उससे बचने के लिए नकारात्मक विचार जरूरी होते हैं, जो कि हमारे जैविक विकास क्रम का ही हिस्सा है, पर आज की जिंदगी में हर दिन और हर समय नकारात्मक बने रहने की जरूरत नहीं। इससे खुद का नुकसान ही होता है।
सकारात्मक सोच से जिंदगी में आती है जीवंतता
अगर हम नकारात्मक विचारों को छोड़ दें तो हर दिन 2० प्रतिशत आने वाल्ो सकारात्मक विचार हमें आशावादी दृष्टिकोण प्रदान करता है। अध्यात्म और योग क्रिया के उपचार में आशावादी दृष्टिकोण हमारे दिमाग में उत्पन्न किया जाता है। आशावादी दृष्टिकोण हर दिन के तनाव व डिप्रेशन को कम करता है। इस कारण से हम परिस्थितियों के उज्जवल पक्ष को देख पाते हैं। चिता और बेचैनी का सामना बेहतर करते हैं तो हृदय रोग, मोटापा, ओस्टियोपोरोसिस, मधुमेह की आशंका कम होती है। हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार, आशावादी लोगों में हार्ट अटैक की संभावना कम होती है।
आशावादी सोच से लाभ ही लाभ
साइकोलॉजी डिपार्टमेंट में प्रो. सुजेन ने छात्रों पर किए अपने अध्ययन में बताती हैं कि नकारात्मक विचार रखने वाले छात्रों की इम्यूनिटी कम होती है, वहीं आशावादी दृष्टिकोण से शरीर की ताकत बढ़ती है। सकारात्मकता ही सोचने-समझने की क्षमता को बढ़ाती है। आपकी नजर नए विकल्प और चुनावों पड़ती है, वहीं जब यह पता चलता है कि परेशानी उतनी नहीं है जितनी नकारात्मक सोच के कारण दिखती है तब समाधान के लिए आप पूरी स्पष्टता के साथ निर्णय व चुनाव कर पाते हैं।
नकारात्मकता और सकारात्मकता के दो पहलू
-नकारात्मक विचार नया सीखने व नए संसाधन जोड़ने की क्षमता कम करते हैं। व्यक्ति में नकारात्मकता का स्तर अधिक होगा तो वह नए काम को सीख नहीं पाएगा, कॅरिअर में सफलता नहीं मिलेगी, सामाजिक संबंध भी नही बन पाएगा, इस तरह वह विकास की ओर नहीं बढ़ पाएगा।
- सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण आप अपने ही समान दूसरे सकारात्मक लोगों और विचारों के साथ जुड़ते हैं। कई दोस्त और अच्छे संबंध बनते हैं। संबंधों के सकारात्मक पक्षों को देख पाते हैं, जिससे आपसी संबंध मजबूत होते हैं और ऐसे व्यक्ति कामयाबी की सीढ़ी पर चढ़ते हैं। अपने विचारों समझें और उन्हें सकारात्मक विचार से बदलें और नकारात्मक शब्दों की जगह सकारात्मक शब्द बोलें।
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