Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
अभिषेक कांत पाण्डेय
इस बार उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी इसकी कवायद तेज होने लगी है। इधर इलाहाबाद में भाजपा कार्यकारणी की बैठक के बाद परिवर्तन रैली से पीएम मोदी ने अपने भाषण से जनता को संदेश दिया की उत्तर प्रदेश में भाजपा आएगी तो वह विकास करेगी। 50 साल का विकास वह पांच साल में करके दिखाएगी। उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की खराब हालत के लिए सपा सरकार पर निशाना साधा। वहीं इलाहाबाद की रैली में भले भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा नहीं चुना गया लेकिन राजनाथ सिहं को सशक्त बताया, उत्तर प्रदेश में उनके राज को अब तक का बेहतर कार्यकाल बताकर नरेंद्र मोदी ने फिलहाल राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश आगे रखा है। रैली में भीड़ को देखकर उत्साहित होने वाले ये अंदाजा लगा सकते हैं कि इस बार भाजपा उत्तर प्रदेश की सत्ता की प्रबल दावेदार है। लेकिन सही रणनीति बनाने में भाजपा अगर सफल रही तो आने वाले चुनाव से पहले वह मुद्दों को अपने पक्ष में कर सकती है, जिससे उसे चुनाव में फायदा मिलेगा।
वहीं इस रैली से ये बात जाहिर हो गई की भाजपा विकास के मुद्दे पर ये चुनाव लड़ेगी। जिस तरह से सपा सरकार अपनी उपलब्धियों के विज्ञापन दिखा रही है, इससे इस बात में दो राय नहीं है कि सपा भी जानती है कि विकास के कार्यों के बारे में उत्तर प्रदेश की जनता को बताने का वक्त आ गया है, इसलिए सपा सीधा मोदी सरकार पर निशान बना रही है और अच्छे दिन की बात याद दिला रही है। वही देखा जाए भले अच्छा दिन क्या है इसकी परिभाषा राजनीतिक रूप नहीं गढ़ी गई लेकिन उत्तर प्रदेश में कितना विकास हुआ है, इसका पैमाना जनता ढूंढ़ रही है। वह अन्य राज्यों से उत्तर प्रदेश की राजनीति से तुलना कर रही है। असम की ताजा जीत और सत्ता में लंबे अर्से के बाद भाजपा की वापसी, उत्तर प्रदेश में सत्ता पाने की के लिए यही जोश भाजपाई कार्यकर्ताओं में भरा हुआ है।
लेकिन सवाल उठता है कि सपा व बसपा के पारंपरिक वोट बैंक खिसक कर जब बीजेपी के खाते में आएगी तब ही भाजपा का निर्वाशन समाप्त होगा और सीटों का 265 प्लस का जादूई आकड़ा छू पाएगा। बडी बात की क्या जनता परिवर्तन चाहती है? क्या मथुरा कांड, कैमरन में पलायन और लॉ एंड आर्डर पर उठने वाले सवाल जनता का मूड बदल रही है। इस गुत्थी को इस तरह समझ सकते हैं, भले चुनाव 2017 में होंगे लेकिन जिस तरह से भाजपा की रणनीति के तहत पिछड़े व दलित चेहरों को पार्टी में जगह दी जा रही है, वहीं राम मंदिर जैसे ध्रुवीकरण करने वाले मुद्दों से मुह मोड़ रही है और अदालत में मामला होने की बात कह कर एक तरह से राम मंदिर मुद्दे के मामले को बैक फुट पर रखकर वह दोहरा फायदा लेने की रणनीति पर है। इसीलिए कांग्रेस भाजपा को विकास के मुद्दे से भटकाने की कोशिश भी करेगी लेकिन वही भाजपा की केंद्र में दो साल के विकास बात के रखकर 2017 के उत्तर प्रदेश की सत्ता के रासते से 2019 के लोकसभा चुनाव में दोबारा सरकार बनाने की जुगत मे लग गई है। भले ये दूसरे पार्टियों को सपना लगे लेकिन ऐसा होने की संभावना भी है, दरअसल लोकसभा 2014 के चुनाव में जिस तरह से भाजपा को यूपी से सीटें मिली, वहीं केंद्र में भाजपा के दो साल के कार्यकाल को कई सर्वे ने अच्छा बताया है तो जाहिर है उत्तर प्रदेश की जनता का मन बदल रहा है, जिसका फायदा बीजेपी को आने वाले समय मे मिल सकता है।
यूपी के चुनाव में विकास की बयार का आइना दिखाने की होड़ होगी, सपा और भाजपा में। जातिवाद की राजनीति से विकास की राजनीति के मुद्दे पर क्या उत्तर प्रदेश की जनता वोट देगी। इस सवाल का जवाब भले सीधे तौर पर न मिले लेकिन जिस तरह से गैर भाजपा सरकार का कार्यकाल उत्तर प्रदेश में रहा है, क्या उनके शासनकाल में सभी का विकास हुूआ है, बिजली,पानी, शिक्षा व बेरोजगारी जैसी समस्या अब भी बनी हुई है, वहीं जिस तरह से सपा और बसपा के पांच—पांच साल के अंतराल में सत्ता में आती हैं और एक दूसरे पर आरोप कर वोट बैंक बांट लेते हैं, वहीं विकास के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। इसी के साथ जाति विशेष की राजनीति में चंद लोगों को फायदा होता है वहीं एक बड़ा तबका शिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, बिजली वितरण, पानी की उचित व्यवस्था, खराब सड़कें आदि की समस्या ग्रसित है तो वह तीसरे पार्टी की तरफ मुखातिब होगा। ऐसे में कांग्रेस की स्थिति जिस तरह से दो राहे में हैं तो सही विकल्प के रूप में जनता इस बार भाजपा को मौका दे सकती है। हलांकि अभी चुनाव में एक साल का समय है लेकिन ये कहना जल्दबाजी नहीं होगा की इस चुनाव में यूपी बदलाव चाहता है, वहीं विकल्प के रूप में इस बार जनता बसपा की जगह किसी तीसरे दल के हाथ में उत्तर प्रदेश की कमान सौंप सकती है, जाहिर है वह भाजपा हो सकती है!
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