Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
संविदा शिक्षक की मांग समान कार्य के लिए दे समान वेतन: समान कार्य समान वेतन
अभिषेक कांत पाण्डेय। भोपाल। सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून लागू होने के चार साल के बाद भी मध्यप्रदेश की सरकार गुणवत्ता वाली शिक्षा दे नहीं पा रही है। अभी भी शिक्षकों की भर्ती संविदा में की जाती है। शिक्षाकार्य करने वाले संविदा शिक्षकों का वेतन प्राईवेट स्कूलों से भी कम है। स्थाई नौकरी, समानकार्य, समान वेतन और सम्मान के लिए संविदा शिक्षक सड़कों पर भी उतर चुके हैं। इसके बावजूद भी संविदा शिक्षकों की सरकार नहीं सुन रही है। जबकि प्रदेश सहित सारे देश में एक से लेकर कक्षा आठ तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून लागू हो चुका है लेकिन शिक्षकों को अभी भी उचित वेतन नहीं दिया जा रहा है। संविदा शिक्षकों का कहना है कि कम वेतन की वजह से जीविकोपार्जन कर पाना कठिन हो रहा। सरकारी शिक्षकों के बराबर काम व योग्यता होने के बावजूद भी इन्हें कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। वहीं आरटीआई लागू होने के बाद कम वेतन में शिक्षण कार्य कराना इस कानून में गुणवत्तयुक्त शिक्षा की बात बेईमानी साबित हो रही है। स्पष्ट है कि कम वेतन में परिवार की जिम्मेदारियों को उठाते हुए उचित शिक्षण कार्य करने में मानसिक रूप से व्यवधान पड़ता है। सरकार इनकी मजबूरियों को नहीं समझ रही है। आपकों बता दें कि प्रदेश सरकार सरकारी शिक्षकों की भर्ती संविदा पर करने की नीति बना रखी जिसमें इन्हें कम वेतन में योग्य शिक्षक प्राप्त होते हैं। जबकि इनसे कार्य नियमित शिक्षक की भांति लिया जाता है। इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में शिक्षा मित्र भी कम वेतन में रखे गए हैं। वहां भी वेतन बढ़ाने और स्थाई करने के लिए कई बार शिक्षा मित्र सड़कों पर उतर चुके। वहीं सरकार इन्हें वोट बैंक की तरह इस्तमाल करने हेतु बार बार उनकी मांगों को मानने के लिए केवल आश्वासन ही दे रही है।
यही हाल मध्य प्रदेश में है यहां भी संविदा शाला के नाम पर कम वेतन पर शिक्षक रखा जा रहा है जबकि कार्य और योग्यता में सरकारी शिक्षक के समान ही है। देश में आरटीआई एक्ट लागू और उचित शिक्षण कार्य के लिए शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देना आवश्यक है लेकिन अगर ऐसा नही होता है तो शिक्षा की गुणवत्ता से खिलावाड़ किया जा रहा है।
संविदा शिक्षक की मांग समान कार्य के लिए दे समान वेतन: समान कार्य समान वेतन
अभिषेक कांत पाण्डेय। भोपाल। सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून लागू होने के चार साल के बाद भी मध्यप्रदेश की सरकार गुणवत्ता वाली शिक्षा दे नहीं पा रही है। अभी भी शिक्षकों की भर्ती संविदा में की जाती है। शिक्षाकार्य करने वाले संविदा शिक्षकों का वेतन प्राईवेट स्कूलों से भी कम है। स्थाई नौकरी, समानकार्य, समान वेतन और सम्मान के लिए संविदा शिक्षक सड़कों पर भी उतर चुके हैं। इसके बावजूद भी संविदा शिक्षकों की सरकार नहीं सुन रही है। जबकि प्रदेश सहित सारे देश में एक से लेकर कक्षा आठ तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून लागू हो चुका है लेकिन शिक्षकों को अभी भी उचित वेतन नहीं दिया जा रहा है। संविदा शिक्षकों का कहना है कि कम वेतन की वजह से जीविकोपार्जन कर पाना कठिन हो रहा। सरकारी शिक्षकों के बराबर काम व योग्यता होने के बावजूद भी इन्हें कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। वहीं आरटीआई लागू होने के बाद कम वेतन में शिक्षण कार्य कराना इस कानून में गुणवत्तयुक्त शिक्षा की बात बेईमानी साबित हो रही है। स्पष्ट है कि कम वेतन में परिवार की जिम्मेदारियों को उठाते हुए उचित शिक्षण कार्य करने में मानसिक रूप से व्यवधान पड़ता है। सरकार इनकी मजबूरियों को नहीं समझ रही है। आपकों बता दें कि प्रदेश सरकार सरकारी शिक्षकों की भर्ती संविदा पर करने की नीति बना रखी जिसमें इन्हें कम वेतन में योग्य शिक्षक प्राप्त होते हैं। जबकि इनसे कार्य नियमित शिक्षक की भांति लिया जाता है। इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में शिक्षा मित्र भी कम वेतन में रखे गए हैं। वहां भी वेतन बढ़ाने और स्थाई करने के लिए कई बार शिक्षा मित्र सड़कों पर उतर चुके। वहीं सरकार इन्हें वोट बैंक की तरह इस्तमाल करने हेतु बार बार उनकी मांगों को मानने के लिए केवल आश्वासन ही दे रही है।
यही हाल मध्य प्रदेश में है यहां भी संविदा शाला के नाम पर कम वेतन पर शिक्षक रखा जा रहा है जबकि कार्य और योग्यता में सरकारी शिक्षक के समान ही है। देश में आरटीआई एक्ट लागू और उचित शिक्षण कार्य के लिए शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देना आवश्यक है लेकिन अगर ऐसा नही होता है तो शिक्षा की गुणवत्ता से खिलावाड़ किया जा रहा है।
संविदा शिक्षक की मांग समान कार्य के लिए दे समान वेतन: समान कार्य समान वेतन
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