Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्यो...
माटी के लाल की बातें
कहां जाएं हम इस डगर में, इस शहर में सड़कें नहीं।
मंजिल है मुसाफिर भी है, वो मुस्कान नहीं।
वो यादें नहीं, वे तन्हाई नहीं,बिक गई वह मुस्कान यहीं।
न जाने मेरी वो तन्हाईयां कहां,
न जाने मेरी वो यादें कहां।
ढूंढता हूं मैं उस उजड़े रास्तों में,
धूमिल हो रही जिंदगी से पूछता हूं।
कब तू तन्हाईयों को, मेरी यादों को ढूढ़ लाएगी।
इस शहर में नहीं, इस सड़क में नहीं।
जगमाती शहर की रोशनी
मेरे इस गांव में कब आएगी।
गांव की सड़क से कब हम शहर की सड़कों पर जाएंगे।
हम हैं हमारे हिस्से जिंदगी, कब तक अपने स्वार्थ के लिए कोई जिएगा।
मंजिल है मुसाफिर भी है, वो दिन हम यूं ही गुजार देंगे।
मेरा भारत है मेरा, कब हमें मिलेगा हमारे हिस्से की रोटी
कब तक कोई कागज़ के पैसों से कमाएगा रकम मोटी।
कब तक हम यूं हलों से हम जमीन पर बोते रहेंगे।
कोई और कब तक हमारी जिंदगी के हिस्से बांटते रहेंगे।
सूनी कालाई, जिसने गंवाई सीमा के पार अपने माटी के लाल।
और कब होगी दिल्ली में इस गांव की कदर।
कब तक कोयले में जलेगा हिंदुस्तान।
कहां जाएं हम इस डगर में, इस शहर में सड़कें नहीं।
मंजिल है मुसाफिर भी है, वो मुस्कान नहीं।
वो यादें नहीं, वे तन्हाई नहीं,बिक गई वह मुस्कान यहीं।
न जाने मेरी वो तन्हाईयां कहां,
न जाने मेरी वो यादें कहां।
ढूंढता हूं मैं उस उजड़े रास्तों में,
धूमिल हो रही जिंदगी से पूछता हूं।
कब तू तन्हाईयों को, मेरी यादों को ढूढ़ लाएगी।
इस शहर में नहीं, इस सड़क में नहीं।
जगमाती शहर की रोशनी
मेरे इस गांव में कब आएगी।
गांव की सड़क से कब हम शहर की सड़कों पर जाएंगे।
हम हैं हमारे हिस्से जिंदगी, कब तक अपने स्वार्थ के लिए कोई जिएगा।
मंजिल है मुसाफिर भी है, वो दिन हम यूं ही गुजार देंगे।
मेरा भारत है मेरा, कब हमें मिलेगा हमारे हिस्से की रोटी
कब तक कोई कागज़ के पैसों से कमाएगा रकम मोटी।
कब तक हम यूं हलों से हम जमीन पर बोते रहेंगे।
कोई और कब तक हमारी जिंदगी के हिस्से बांटते रहेंगे।
सूनी कालाई, जिसने गंवाई सीमा के पार अपने माटी के लाल।
और कब होगी दिल्ली में इस गांव की कदर।
कब तक कोयले में जलेगा हिंदुस्तान।
अभिषेक कांत पाण्डेय
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