Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
अभिषेक कांत पाण्डेय 5 सितंबर शिक्षक दिवस पर विशेष सामग्री
गुरू के बिन ज्ञान कहां
कोई भी व्यक्ति बिना गुरू के अधूरा है।
महाभारत के युद्ध में विचलित अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया जिसके बाद
अर्जुन ने सत्य का साथ दिया। इस तरह अर्जून के जीवन का अंधेरा गुरू के ज्ञान के प्रकाश
से दूर हो गया और अर्जुन ने श्रीकृष्ण को गुरू के रूप में स्वीकार किया। हमारे देश
की संस्कृति में गुरू और शिष्य परंपरा प्राचीनकाल से ही देखने को मिलती है।
मनुष्य को सही राह गुरू ही दिखा सकता
है, बिना गुरू के ज्ञान नहीं मिलता है। आज की स्कूली पद्धति में गुरू और शिष्य परंपरा
लोप होती जा रही है। विद्या अर्जन जबसे व्यावसायिक हो गई है तब से हमने अपनी संस्कृति
व परंपरा को पीछे छोड़ दिया है। पश्चिमी देशों में जिस तरह से स्कूल में छात्रों के
द्वारा हिंसक घटनाएं देखने को मिलती हैं और वहीं हमारे देश में भी छात्रों और गुरूओं
के कथित व्यवहार हमारे समाज में स्वीकृत नहीं है। भारतीय संस्कृति और परंपरा के विरूद्ध
है।
यह माना जाता है कि किसी देश का विकास
उसके स्कूलों में होता है जहां विद्यार्थी ज्ञान के साथ सही इंसान बनने की सीख लेते
हैं, लेकिन जब गुरू ही विचलित हो तो अर्जुन को ज्ञान कहा से दे सकता है। गुरू व शिष्य
परंपरा में हमें ज्ञान के साथ नैतिकता, सदाचार की शिक्षा भी मिलती है। अफसोस कि हमारी
वर्तमान शिक्षा पद्धति में नैतिक मूल्यों का महत्व कम होता जा रहा है।
सर्वपल्ली राधाकृष्णनन जो भारतीय संस्कृति के मनीषी और शिक्षाविद्व थे उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष
5 सितंबर को शिक्षक दिवस मानाया जाता है। हमारी वैदिक संस्कृति में शिक्षा गुरू शिष्य
परंपरा के अनुसार आश्रम में दी जाती थी। गुरू शिष्य को पुत्र की तरह मानता था और शिष्य
अपने गुरू के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होता था। आज शिक्षक दिवस पर गुरू के सम्मान में औपचारिकताएं
होती हैं।
सही मायने अगर छात्र को सही और उचित मूल्यों
वाली शिक्षा बिना व्यावसायिक भाव के एक समान नजरिये से दिया जाए तो वह दिन दूर नहीं
है कि हम विज्ञान और सूचना क्षेत्र प्रोफेश्नल के साथ ही एक सच्चा नागरिक और सही मायनों
में सही इंसान बना सकते हैं।
हम गुरूओं की पूजा करने वाले देश के नागरिक
है जो इस श्लोक से सार्थक हाता है—गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः
।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।
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