Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्यो...
बड़े काम का अविष्कार दूरबीन
Doorbin
दूरबीन में दो समान क्षमता वाले लेंस लगे होते हैं। ये दोनों लैंस एक ही दिशा में एक सीध में होते हैं। ये दोनों लेंस एक ही समय में एक ही दिशा और वस्तु पर फोकस करते हैं, जिससे व्यक्ति को किसी वस्तु को देख पाना बहुत आसान हो जाता है। बाइनोकुलर्स यानी दूरबीन को इस तरह डिजाइन किया गया है, जिससे देखने वालों को किसी वस्तु को सही, साफ और बड़े आकार में देखने में सहायता मिलती है। इससे तुम थ्री डाइमेंशन व्यू देख सकते हो। दूरबीन का इतिहास सबसे पहला दूरबीन टेलिस्कोप के आधार पर विकसित किया गया। आज भी टेलिस्कोप का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। दूरबीन की तुलना में टेलिस्कोप से हम एक आंख से देख पाते हैं।
गैलीलियन बाइनोकुलर्स
इसमें दो अलग-अलग लैंस होते थे। 17वीं शताब्दी से पहले जब टेलिस्कोप का अविष्कार हुआ, तभी से बाइनोकुलर्स की तरह किसी चीज को बनाने का विचार भी जन्म लेने लगा था। पहले बनने वाले बाइनोकुलर्स में गैलीलियन ऑप्टिक्स यानी मिरर थे, जिनमें उत्तल और अवतल लैंस एक साथ लगे होते थे। इसमें किसी वस्तु का विजन काफी साफ दिखाई देता था, लेकिन इसमें आकृति अब के समान बड़ी दिखाई नहीं देती थी।
पोरो प्रिज्म बाइनोकुलर्स
इस दूरबीन का आविष्कार इटेलियन ऑप्टिशियन इग्नैजियो पोरो ने किया था। इसी कारण इसका यह नाम भी पड़ा। उन्होंने 1854 में इस तकनीक को पेटेंट कराया। आगे चलकर कार्ल जेसिस ने 189० में इस तकनीक को रिफाइन किया। पोरो प्रिज्म में प्रिज्म को जेड-शेप दी गई थी, जिससे हम किसी विषय की छवि को साफ देख सकते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि बड़े आकार की दूरबीन का निर्माण होने लगा। जिसमें लैंस एक-दूसरे से काफी अलग होते थे। यह प्रिज्म बाइनोकुलर्स गैलीलियन बाइनोकुलर्स से बेहतर थे इसलिए गैलीलियन बाइनोकुलर की लोकप्रियता घटने लगी थी। इसके बाद रूफ प्रिज्म बाइनोकुलर्स का जन्म हुआ। इस दूरबीन को बनाने का श्रेय एशले विक्टर मिले डॉबरीज को जाता है। रूफ प्रिज्म पोरो प्रिज्म की तुलना में छोटा और कॉम्पैक्ट था। आज दुनियाभर में दूरबीन के कई प्रकार हैं। तो तैयार हो जाओ दूर की चीजों से दोस्ती करने के लिए!
Doorbin
बच्चों, कुछ अविष्कार ऐसे हैं जो दुनिया को बदल दिया, दूरबीन ऐसा ही अविष्कार है। यह दूर की चीजों को पास ले आती है और पास की चीजों को दूर दिखाती है। ऐसा जादू के कारण नहीं बल्कि विज्ञान के कारण होता है, दूरबीन आखिर बनी कैसे? आइए जानते हैं इसके बारे में-
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बच्चों, क्या तुमने कभी दूरबीन का इस्तेमाल किया है? बहुत काम की चीज है यह दूरबीन, जिससे देखने पर दूर आसमान के छोटे तारे भी साइज में बड़े और बेहद नजदीक नजर आने लगते हैं। शिकार के शौकीन लोगों, खगोलशास्त्री, नाविक, खारे जल की मछलियां पकड़ने वालों के लिए यह बड़ी उपयोगी चीज है। इतना ही नहीं, समुद्री और पहाड़ी क्षेत्रों में घूमने जाने वाले लोग अपने साथ दूरबीन रखना बहुत पसंद करते हैं। खास बात यह है कि बच्चे भी इसे आसानी से संभाल लेते हैं और उनके लिए अपने से बहुत दूर के दृश्यों को पास से देखना संभव हो जाता है। नई-नई तकनीक ने एक आम व्यक्ति के लिए भी इसे प्रयोग करना आसान बना दिया है।
खेल—खेल में बनी पहली दूरबीन
दूरबीन को बनाने वाले यानी फॉदर ऑफ टेलीस्कोप का नाम था, हेंस लिपरेशी। हॉलैंड देश के मिडिल बर्ग शहर में रहने वाले हेंस चश्मो का बिजनेस करते थे। हेंस का बेटा अक्सर कांच के रंग-बिरंगे टुकड़ों के साथ खेलता था। ऐसे ही एक दिन वह पिता लिपरेशी के साथ दुकान पर था। खेल खेल में बेटे ने टोकरी उठाई और बैठ के कांच छांटने लगा फिर उनको उठा के उसने आर-पार देखना शुरू किया। कभी अलग-अलग और कभी सबको साथ मिलाकर देखना शुरू किया। तब उसने देखा कि सामने जो गिरजाघर की मीनार है वो एकदम से पास आ गई है, उसको लगा कोई भ्रम है। फिर से देखा तो फिर से वही नजारा दिखा। उसने चिल्लाकर यह बात पिता को बताई तो लिपरेशी ने उसके हाथ से दोनों कांच के टुकड़े ले लिए। उसने भी कांच के टुकड़ों से मीनार को देखने की कोशिश की। उसको भी मीनार पास दिखाई देने लगी। उसने कई बार ऐसा कर के देखा और फिर उसे कांच का यह विज्ञान समझ आ गया। हेंस लिपरेशी खुशी से झूम उठा। उसने बच्चे को गोद में उठाते हुए कहा कि तुमने एक नई खोज की है। अब तक बच्चा इसे समझ नहीं पाया था। तब हेंस ने उसे समझाया कि तुमने दूर की चीज को पास दिखाने वाली तरकीब खोज दी है। अब हम एक यंत्र बनाएंगे इससे हमारा खूब नाम होगा।हेंस लिपरशी ने वैसे ही कांच को लगा के एक दूरबीन बनाई जो दुनिया की पहली दूरबीन थी। इसी दूरबीन के आधार पर गेलिलियो ने बड़ी दूरबीन बनाई। इस तरह दुनिया की पहली दूरबीन का अविष्कार हुआ।
कैसे काम करती है दूरबीन
बच्चों, क्या तुमने कभी दूरबीन का इस्तेमाल किया है? बहुत काम की चीज है यह दूरबीन, जिससे देखने पर दूर आसमान के छोटे तारे भी साइज में बड़े और बेहद नजदीक नजर आने लगते हैं। शिकार के शौकीन लोगों, खगोलशास्त्री, नाविक, खारे जल की मछलियां पकड़ने वालों के लिए यह बड़ी उपयोगी चीज है। इतना ही नहीं, समुद्री और पहाड़ी क्षेत्रों में घूमने जाने वाले लोग अपने साथ दूरबीन रखना बहुत पसंद करते हैं। खास बात यह है कि बच्चे भी इसे आसानी से संभाल लेते हैं और उनके लिए अपने से बहुत दूर के दृश्यों को पास से देखना संभव हो जाता है। नई-नई तकनीक ने एक आम व्यक्ति के लिए भी इसे प्रयोग करना आसान बना दिया है।
खेल—खेल में बनी पहली दूरबीन
दूरबीन को बनाने वाले यानी फॉदर ऑफ टेलीस्कोप का नाम था, हेंस लिपरेशी। हॉलैंड देश के मिडिल बर्ग शहर में रहने वाले हेंस चश्मो का बिजनेस करते थे। हेंस का बेटा अक्सर कांच के रंग-बिरंगे टुकड़ों के साथ खेलता था। ऐसे ही एक दिन वह पिता लिपरेशी के साथ दुकान पर था। खेल खेल में बेटे ने टोकरी उठाई और बैठ के कांच छांटने लगा फिर उनको उठा के उसने आर-पार देखना शुरू किया। कभी अलग-अलग और कभी सबको साथ मिलाकर देखना शुरू किया। तब उसने देखा कि सामने जो गिरजाघर की मीनार है वो एकदम से पास आ गई है, उसको लगा कोई भ्रम है। फिर से देखा तो फिर से वही नजारा दिखा। उसने चिल्लाकर यह बात पिता को बताई तो लिपरेशी ने उसके हाथ से दोनों कांच के टुकड़े ले लिए। उसने भी कांच के टुकड़ों से मीनार को देखने की कोशिश की। उसको भी मीनार पास दिखाई देने लगी। उसने कई बार ऐसा कर के देखा और फिर उसे कांच का यह विज्ञान समझ आ गया। हेंस लिपरेशी खुशी से झूम उठा। उसने बच्चे को गोद में उठाते हुए कहा कि तुमने एक नई खोज की है। अब तक बच्चा इसे समझ नहीं पाया था। तब हेंस ने उसे समझाया कि तुमने दूर की चीज को पास दिखाने वाली तरकीब खोज दी है। अब हम एक यंत्र बनाएंगे इससे हमारा खूब नाम होगा।हेंस लिपरशी ने वैसे ही कांच को लगा के एक दूरबीन बनाई जो दुनिया की पहली दूरबीन थी। इसी दूरबीन के आधार पर गेलिलियो ने बड़ी दूरबीन बनाई। इस तरह दुनिया की पहली दूरबीन का अविष्कार हुआ।

कैसे काम करती है दूरबीन
दूरबीन में दो समान क्षमता वाले लेंस लगे होते हैं। ये दोनों लैंस एक ही दिशा में एक सीध में होते हैं। ये दोनों लेंस एक ही समय में एक ही दिशा और वस्तु पर फोकस करते हैं, जिससे व्यक्ति को किसी वस्तु को देख पाना बहुत आसान हो जाता है। बाइनोकुलर्स यानी दूरबीन को इस तरह डिजाइन किया गया है, जिससे देखने वालों को किसी वस्तु को सही, साफ और बड़े आकार में देखने में सहायता मिलती है। इससे तुम थ्री डाइमेंशन व्यू देख सकते हो। दूरबीन का इतिहास सबसे पहला दूरबीन टेलिस्कोप के आधार पर विकसित किया गया। आज भी टेलिस्कोप का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। दूरबीन की तुलना में टेलिस्कोप से हम एक आंख से देख पाते हैं।
गैलीलियन बाइनोकुलर्स
इसमें दो अलग-अलग लैंस होते थे। 17वीं शताब्दी से पहले जब टेलिस्कोप का अविष्कार हुआ, तभी से बाइनोकुलर्स की तरह किसी चीज को बनाने का विचार भी जन्म लेने लगा था। पहले बनने वाले बाइनोकुलर्स में गैलीलियन ऑप्टिक्स यानी मिरर थे, जिनमें उत्तल और अवतल लैंस एक साथ लगे होते थे। इसमें किसी वस्तु का विजन काफी साफ दिखाई देता था, लेकिन इसमें आकृति अब के समान बड़ी दिखाई नहीं देती थी।
पोरो प्रिज्म बाइनोकुलर्स
इस दूरबीन का आविष्कार इटेलियन ऑप्टिशियन इग्नैजियो पोरो ने किया था। इसी कारण इसका यह नाम भी पड़ा। उन्होंने 1854 में इस तकनीक को पेटेंट कराया। आगे चलकर कार्ल जेसिस ने 189० में इस तकनीक को रिफाइन किया। पोरो प्रिज्म में प्रिज्म को जेड-शेप दी गई थी, जिससे हम किसी विषय की छवि को साफ देख सकते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि बड़े आकार की दूरबीन का निर्माण होने लगा। जिसमें लैंस एक-दूसरे से काफी अलग होते थे। यह प्रिज्म बाइनोकुलर्स गैलीलियन बाइनोकुलर्स से बेहतर थे इसलिए गैलीलियन बाइनोकुलर की लोकप्रियता घटने लगी थी। इसके बाद रूफ प्रिज्म बाइनोकुलर्स का जन्म हुआ। इस दूरबीन को बनाने का श्रेय एशले विक्टर मिले डॉबरीज को जाता है। रूफ प्रिज्म पोरो प्रिज्म की तुलना में छोटा और कॉम्पैक्ट था। आज दुनियाभर में दूरबीन के कई प्रकार हैं। तो तैयार हो जाओ दूर की चीजों से दोस्ती करने के लिए!
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