Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्यो...
निबंध लेखन सीबीएसई बोर्ड अनुच्छेद लेखन एजुकेशनल
निबंध लेखन: खुद को आत्मनिर्भर बनाने की राह में महिलाएं
निबन्ध (Essay) लेखन कई परीक्षा में पूछा जाता है। अब अनुच्छेद लेखन पूछने की परंपरा 910 की कक्षा में शुरू हो गया है इसलिए यह छोटा निबंध अनुच्छेद लेखन जिसने मेरी सहायता करता। जाता है।किसी देश की तरक्की में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है। परिवार को संभालने वाली महिला अब समाज और देश को नई दिशा दे रही हैं। ये सिलसिला आजादी के बाद से अब तक अनवरत चल रहा है। पुरुषों से कमतर समझे जाने वाली महिलाओं ने शिक्षा, विज्ञान, इंजीनियरिंग, मेडिकल और सेना जैसे क्षेत्र में खुद को साबित किया है। जहां कामयाबी पुरुषों का अधिकार समझा जाता था, वहीं महिलाओं ने इस भ्रम को तोड़ दिया है, वे कामयाबी की राह में आगे बढ़ रही हैं। चाहे जितनी मुश्किलें हो लेकिन आगे बढ़ने और खुद को स्थापित करने का जज्बा महिलाओं को कामयाब बना रहा है। निबन्ध (Essay) writing 2021 new updatet in hindi.
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भारतीय समाज में महिलाओं का विशिष्ट स्थान रहा हैं। पत्नी को पुरूष की अर्धांगिनी माना गया है। वह एक विश्वसनीय मित्र के रूप में भी पुरुष की सदैव सहयोगी रही है। लेकिन पुरुष वर्चस्व मानसिकता वाले समाज ने महिलाओं को घर की दहलीज से बाहर कदम रखने पर पाबंदी लगाता रहा है। महादेवी वर्मा ने कहा था कि नारी केवल एक नारी ही नहीं अपितु वह काव्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति है। पुरुष विजय का भूखा होता हैं और नारी समर्पण की। शायद इसीलिए अपने सुनहरे भविष्य के सपने देखने वाली महिलाएं कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती हैं, तब उनकी इस सफलता को पुरुष मानसिकता बर्दाश्त नहीं पाता है। घर-बाहर सभी जगह महिलाओं और लड़कियों पर हिंसा इसी का जीता जागता उदाहरण है।
पुरुष मानसिकता
भारत का इतिहास उठाकर देखें तो सामाजिक तानेबाने का हमारा समाज शुरू से ही महिलाओं की आजादी को दकियानूसी विचारधारा से रोकता रहा है। बाल विवाह, बहुविवाह आदि प्रचलन इतिहास के पन्नों में भरा पड़ा है, यानी महिलाओं को वे आजादी नहीं मिली जो पुरुषों को मिलती रही है। महिलाएं भले परिवार का हिस्सा हों पर वे आज भी स्वतंत्र फैसले नहीं ले सकती हैं। उसे समाज में जीने के लिए पुरुषों की सहारे की जरूरत समझी जाती है। यही कारण है कि आदिकाल से अब तक पुरुषप्रधान समाज महिलाओं को स्वच्छंद रूप से जीने का अधिकार व्यावहारिक धरातल पर देने का हिमायती नहीं रहा है। अब जब समय बदला है तो लोगों की सोच बदली है, अब बहुत से पुरुषों ने महिलाओं को आगे बढ़ाने उन्हें मान-सम्मान और बेहतर जीवन का हकदार बनाने के लिए सामने आ रहे हैं। लेकिन आज भी समाज में ऐसे पुरुष मानिसकता हावी है, जो महिलाओं को केवल उपभोग की वस्तु समझता है। वहीं लोकतंत्र में पुरुषों और महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया गया है। महिलाओं के लिए कई विशेष कानून बने हैं, लेकिन इन सबके बावजूद भी महिलाओं की सुरक्षा और उनकी आजादी के लिए ये कानून कारगर नहीं हैं।
बचपन से भरी जाती है भेद-भाव की भावना
भारतीय समाज के संदर्भ में किए गए कई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि एक ही परिवार में लड़का और लड़की में भेद किया जाता है। लड़कों की परवरिश लड़कियों के मुकाबले बेहतर होती है। लड़कों को अच्छे स्कूल में पढ़ाई, उनकी सेहत पर लड़कियों की तुलना में ज्यादा ध्यान दिया जाता है। भाई-बहन के बीच में यह भ्ोद-भाव लड़कों के मन व मस्तिष्क पर खुद को श्रेष्ठ मानने की मनोवैज्ञानिक अवधाराणा बचपन से पनने लगती है, जबकि लड़कियों में ठीक इसके उल्टे खुद को कमजोर समझने की भावना उनमें बैठ जाती है। जब लड़के बड़े होते हैं तो खुद को श्रेष्ठ समझने वाली उनकी धारणा, जो उन्हें परिवार में बचपन से मिली है, उसी भावना में जीते हैं। जबकि परिवार में अपने भाई से कमतर समझी जाने वाली भावना लड़कियों में बचपन से भरी गई है, उसके कारण वे जीवनभर अपने लिए स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाती हैं और अपनी मनमर्जी से जी भी नहीं सकती हैं, यहां तक कि वे शादी और कॅरिअर जैसे जीवन के महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए पहले पिता, फिर पति के इच्छा पर निर्भर रहती हैं।
सशक्त होती महिलाएं
19वीं सदी में जब पुनर्जागरण शुरू हुआ तो महिलाओं के कल्याण के कई आंदोलन हुए। भारत की आजादी की लड़ाई में महिलाओं की गौरवमयी भागीदारी रही। कस्तूरबा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, कमला नेहरु, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू जैसी महिलाओं ने भारत की आजादी के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। बीसवीं सदी की शुरुआत में महिलाएं अपनी प्रगति की नई इबारत लिखना शुरू किया, वे शिक्षा से चिकित्सा के क्ष्ोत्र में खुद को स्थापित करने में लगीं। उनकी यह पहल समाज में महिलाओं की बदलती भूमिका को प्रतिस्थापित कर रहा था। आजादी के बाद से महिलाएं राजनीति में नया मुकाम बनाना शुरू किया, वे लोकसभा, राज्यसभा, विधान सभाओं तथा स्थानीय निकायों का सशक्त नेतृत्व करने की भूमिका में आईं। महिला सशक्तिकरण के इस युग में महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए सरकारी प्रयास भी सफल होने लगे, महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए महिला आरक्षण भी इस प्रयास का हिस्सा है। आज बिजनेस, इंजीनियरिंग, विज्ञान-अनुसंधान, ख्ोले के क्ष्ोत्र महिलाएं पुरुषों से किसी स्तर पर कम नहीं हैं। पर सवाल यह है कि आज भी महिलाओं को बढ़ने की आजादी समाज क्यों नहीं देता है? जबकि महिलाओं ने ये दिखा दिया कि प्रकृति रूप से पुरुष और महिला के बीच भेद वाले हजारों वर्षों की विचारधारा को झुठलाकर खुद को मजबूत और कामयाब बनाया है। लोकतंत्र सभी नागरिकों को रोजगार, सम्मान से जीने का अधिकार और सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार देता है। लेकिन महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा और लगातार महिलाओं के सम्मान और उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले लोग भी इसी समाज का हिस्सा हैं। महिलाओं को भोग की वस्तु समझने वाले कथित ऐसे पुरुष मानसिकता के खिलाफ कब समाज जागेगा? महिलाओं की संरक्षा के लिए चाहे जितने कानून बना दिया जाए लेकिन सबसे बड़ी जरूरत है, महिलाओं के प्रति समाज के नजरिए में बदलाव आना।
उपसंहार
बिजनेस में बढ़ती महिलाओं की भागीदारी
-व्यावसायिक संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, एक सर्वे के अनुसार भारतीय महिलाओं की भागीदारी कुल उद्योगों में दस प्रतिशत हैं और यह भागीदारी निरंतर गतिशील हो रही है। बैंकिग, केंद्र सरकार, राज्य सरकार, कॉर्पोरेट जगत, स्वयंसेवी संस्थाओं तकनीकी क्षेत्र आदि में स्किल से लैस महिलाएं भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ा रही हैं। महिलाओं के काम करने की क्षमता जैसे, नेटवर्किंग की क्षमता, काम प्रति समर्पण, सहयोगियों के साथ मधुर व्यवहार, सीखने की जिज्ञासा, सकारात्मक सोच के इन्हीं गुणों के कारण महिलाएं आज इन क्षेत्रों में सफल नेतृत्व भी कर रही हैं।
-दूसरे सर्वे के अनुसार भारत में कुल 9 लाख 95144 लघु उद्योग उद्यमशाील महिलाओं द्बारा संचालित हैं। स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाएं दूसरी सैकड़ों महिलाओं को अत्मनिर्भर बना रही हैं। केरल में ऐसे स्वयं सहायता समूह के कारण आज वहां सौ प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं और अपने अधिकारों के लिए सजग हैं। बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में ग्रामीण महिलाएं आज स्वयं सहायता समूह से अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं।
निबंध लेखन essay writing in hindi for class 9 to 12
-रिसर्च से ये बात सामने आया है कि महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने से परिवार में खुशहाली और आर्थिक तंगी भी दूर होती है, क्योंकि उस परिवार में अभी तक पुरुष ही कमाते थे और परिवार की बढ़ती जरूरतों को बमुश्किल से पूरा कर पाते हैं। ऐसे में महिलाएं का आत्मनिर्भर बनना, बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छा पोषण दोनों उपलब्ध होता है। मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ये तथ्य सामने आए हैं।
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