Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
आओ हम एक हो जाएं
नेक सलाह
अभिषेक कांत पाण्डेयआज भारत आजाद है, हम आजादी की सांस ले रहे हैं लेकिन हमने देश में ही मानव-मानव के बीच लंबी रेखाएं खींच रखी हैं। धर्म, जाति, संप्रदाय, अमीरी-गरीबी, गोरे-काले आदि की जबकि हम भारत के निवासी हैं, हम उस देश में रहते हैं, जहां विभिन्न प्रकार के लोग हैं। इनके बीच एकता स्थापित करना और एक देश के निवासी होने का गर्व हमारे मन में होना चाहिए। धर्म, देश, लोकतंत्र इक दूसरे के पर्याय हैं। धर्म का अर्थ मानव प्रेम और देश का अर्थ यहां रहने वाले लोगों में एकता और लोकतंत्र पर विश्वास रखना। लोकतंत्र का मतलब बराबरी से जीने का हक, कोई भ्ोद-भाव नहीं। क्या हम मानव जाति के कल्याण के लिए धर्म, देश और लोकतंत्र को एक दूसरे का पूरक नहीं बना सकते हैं। देश और लोकतंत्र दोनों शरीर और आत्मा है तो धर्म उसमें रहने वाले व्यक्ति के लिए आचरण, नैतिकता, कर्तव्य, विश्व बंधुता के भाव की धारा बहाती है। निश्चय ही देश बड़ा होता है, क्योंकि यह ही सभी देशवासियों को एक सूत्र में पिरोता है और मानव जाति को सुरक्षित और सम्मान से जीने का हक देता है। देश के प्रति हमारे कर्तव्य हैं, जिसके लिए हमें सारे मत-भ्ोद भुलाकर, देश प्रेम के लिए हमेशा समर्पित रहना चाहिए।
मानव प्रेम ही सच्चा धर्म है। मानव केवल मानव होता है, इनमें भ्ोद हम लोग ही करते हैं। इस जगत में सभी धर्म मानव से प्रेम करना ही सिखाता है। लेकिन आज मतिभ्रम के कारण मनुष्यों ने धर्म के नाम पर रक्तपात करने लगा है। स्वामी विवेकानंद का मत था कि सभी धर्म एक ही सत्य की विभिन्न अभिव्यक्तियां हैं। एक दिन ऐसा आएगा, जब राष्ट्र-राष्ट्र का भेद दूर हो जायेगा। यदि एक धर्म सच्चा है, तो निश्चय ही अन्य सभी धर्म भी सच्चे हैं। पवित्रता व दयालुता किसी एक संप्रदाय विशेष की संपत्ति नहीं है। प्रत्येक धर्म ने श्रेष्ठ एवं अतिशय-उन्नत चरित्र स्त्री-पुरुषों को जन्म दिया है। धर्म का मूल तत्व देश-प्रेम और मानव-प्रेम है। ये बातें विवेकानंद ने11 सितंबर, 1893 को शिकागो में सर्वधमã सम्मेलन में कही थीं।
उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि यदि मानवों में भक्ति है, तो हिदू, मुस्लिम, इसाई एवं सिख एक हैं। ईश्वर को सभी पंथों से प्राप्त किया जा सकता है। सभी धर्मों का एक ही सत्य है और वह है जीवन जीने की राह को बताना। भक्तगण भगवान को विभिन्न नामों से पुकारते हैं। एक तालाब के चार घाट हैं।
हिदू एक घाट पर पानी पी रहे हैं। वे उसे जल कहते हैं। मुसलमान दूसरे घाट पर पानी पीते हैं और वे उसे पानी कहते हैं। तीसरे घाट पर अंग्रेज पानी पीते हैं और वे उसे वाटर कहते हैं। कुछ लोग चौथे घाट पर पानी को अक्वा कहते हैं। यही इस दुनिया के धर्म और संप्रदायों के अनुयायियों की सोच-सोच में फर्क है। दुनिया के विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोग अपने-अपने नजरियों से उसका मूल्यांकन कर रहे हैं, लेकिन उनमें से कोई भी सभी धर्मो और संप्रदायों के मूल तत्व की ओर झांकने का प्रयास नहीं कर रहा है। आज अगर मनुष्यों की सोच में विषमता देखी जा रही है, तो इसका सिर्फ एक ही कारण है और वह मत-विभिन्नता है। आज जरूरत इस बात की नहीं कि धर्म की रक्षा कैसे की जाए, जबकि आज मानवता की रक्षा करना अधिक जरूरी है। इस पूरे ब्रह्मांड में केवल धरती पर ही मानव जीवन है, अगर यह संकट में आ जाएंगे तो इस पूरी सृष्टि का अंत हो जाएगा। हमें स्वार्थ से दूर, सभी की भलाई की बात सोचना चाहिए, सच्चे अर्थों में यही धर्म है, और सभी धर्मों का यह आधार है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें