Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
कविता
अभिषेक कांत पाण्डेय भड्डरी
अभिषेक कांत पाण्डेय भड्डरी
कमाल की बात है
सत्ता वंश में है
वंश बनाम लोकतंत्र
वंश को एक प्रसिद्धि चाहिए।
वंश कहता बन जाओ सिपाही
बगावत करो मेरे लिए
सूझ बूझ का बाण
पैनी समझ की तीर छोड़ता
वह जानता
जनता नहीं कहेगी
सिंघासन खाली करो।
उसी ने तो बैठाया है
वंश के वेश में मैं
कहीं कोई जोगी तो कहीं कोई लड़का,
कोई वंश हुकूमत का सीख रहा ककहरा।
उसी धरती का किसान
जोत रहा है नये खेत
खाद पानी से सीचेगा
नये बीज डालेगा
बीजपत्र से निकलेगा
एक नई चेतना।
वह जवाब होगी
उस राजमहल के अंदर चल रही
सूझ बूझ का
जो लोकतंत्र को बदल दिया है
वंश की बेल में,
जिसकी शाखाएं
उलझी जनता के मन में।
जनता इस उलझन में नहीं
वो तो एक लोहार की तरह
बना रहा है नया औजार
भरोसे की पॉलिस से मांजकर
न लगने वाले जंग से
खराब होने वाले इस तंत्र में
एक मरम्मत करेगा।
बस एक बार इसलिए उस सूझ बूझ को जो
सत्ता दीवारों और उन परिवारों के बीच खेली जाती है
इतिहास से अब तक।
वहीं इसी बीच
उन सरकारी रिपोर्टों पर
प्रहार है
जो वादे में, जो परिवार से लिखती है बनावटी स्क्रिप्ट
जनता को समझाती है
फिर लोकतंत्र में हासिल करती
बाप दादाओं के मार्फत एक नई जमीन।
फिर सत्ता में लौट
बिखेरीती एक घड़ियाली नई मुस्कान
इस बार हम तैयार हैं।
कॉपी राइट
copy right 2017
सत्ता वंश में है
वंश बनाम लोकतंत्र
वंश को एक प्रसिद्धि चाहिए।
वंश कहता बन जाओ सिपाही
बगावत करो मेरे लिए
सूझ बूझ का बाण
पैनी समझ की तीर छोड़ता
वह जानता
जनता नहीं कहेगी
सिंघासन खाली करो।
उसी ने तो बैठाया है
वंश के वेश में मैं
कहीं कोई जोगी तो कहीं कोई लड़का,
कोई वंश हुकूमत का सीख रहा ककहरा।
उसी धरती का किसान
जोत रहा है नये खेत
खाद पानी से सीचेगा
नये बीज डालेगा
बीजपत्र से निकलेगा
एक नई चेतना।
वह जवाब होगी
उस राजमहल के अंदर चल रही
सूझ बूझ का
जो लोकतंत्र को बदल दिया है
वंश की बेल में,
जिसकी शाखाएं
उलझी जनता के मन में।
जनता इस उलझन में नहीं
वो तो एक लोहार की तरह
बना रहा है नया औजार
भरोसे की पॉलिस से मांजकर
न लगने वाले जंग से
खराब होने वाले इस तंत्र में
एक मरम्मत करेगा।
बस एक बार इसलिए उस सूझ बूझ को जो
सत्ता दीवारों और उन परिवारों के बीच खेली जाती है
इतिहास से अब तक।
वहीं इसी बीच
उन सरकारी रिपोर्टों पर
प्रहार है
जो वादे में, जो परिवार से लिखती है बनावटी स्क्रिप्ट
जनता को समझाती है
फिर लोकतंत्र में हासिल करती
बाप दादाओं के मार्फत एक नई जमीन।
फिर सत्ता में लौट
बिखेरीती एक घड़ियाली नई मुस्कान
इस बार हम तैयार हैं।
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