Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
भारत की क्षेत्रीय भाषाओं पर अंग्रेजी हावी है, यह आप समझिए।
हिंदी का विरोध करनेवाले इंग्लिश सीख लेंगे लेकिन हिंदी से इनको परहेज है, जो भाषा सारे समाज व देश को जोड़ती है, उसका सम्मान होना चाहिए। आप तर्कों को समझने की कोशिश कीजिए।
हिंदी का विरोध करने वाले और अंग्रेजी का सपोर्ट करने वाले चंद ऐसे सामंतवादी विचारधारा के लोग हैं जो पूंजीवादी विचारधारा को लेकर चलते हैं, और अंग्रेजी में ही अपनी रोजी रोटी चला रहें।
कुछ लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा को सामने रखकर 'हिंदी' का विरोध करते हैं। ऐसे हिंदी बेल्ट में भी लोग हैं।
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छोटी सी झपकी आपको बनाए फ्रेश
रिसर्च लिखने और पढ़ने में दिमाग अलग-अलग तरह से सोचता है
मैथ का भूत हटाओ ये टिप्स अपनाओ
मातापिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छी आदतें सीखें और अपने पढ़ाई में आगे रहें, लेकिन आप चाहे तो बच्चों में अच्छी आदत का विकास कर सकते ..
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हिंदी का विरोध करने वाले और अंग्रेजी का सपोर्ट करने वाले चंद ऐसे सामंतवादी विचारधारा के लोग हैं जो पूंजीवादी विचारधारा को लेकर चलते हैं, और अंग्रेजी में ही अपनी रोजी रोटी चला रहें।
कुछ लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा को सामने रखकर 'हिंदी' का विरोध करते हैं। ऐसे हिंदी बेल्ट में भी लोग हैं।
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असल में हिंदी प्रदेशों के कुछ पूंजीवादी और सामंती विचारधारा के लोग बहाना बनाकर अंग्रेजी का महिमामंडन कर के अंग्रेजी भाषा को आजादी से लेकर अब तक पाल रहे हैं।
अंग्रेजी सोच, अंग्रेजी पूंजीवादी व्यवस्था, अंग्रेजी सामंतवादी व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं। असल में ऐसे लोगों को अपनी क्षेत्रीय और हिंदी भाषा दोनों से ही प्यार नहीं हैं।
ऐसे लोग भड़काते हैं, मुंबई में मराठी चलती है लेकिन सबसे अधिक महंगे स्कूल अंग्रेजी माध्यम के हैं।
हिंदी फिल्मों में एक्टिंग करने वाले अंग्रेजी के यह शहजादे-शहजादियाँ, हिंदी से करोड़ों कमाते हैं लेकिन हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के नाम पर चुप्पी साध लेते हैं।
अंग्रेजी के गुलाम लोग ही हिंदी और भारतीय भाषाओं का विरोध करते हैं और कुछ लोग भारतीय भाषाओं के आड़ में हिंदी का विरोध करते हैं।
जिस राष्ट्र की आधिकारिक और कामकाजी रूप से कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, उसकी कोई पहचान नहीं। इसलिए हर भारतीयों का कर्तव्य है कि अंग्रेजी की गुलामी से बाहर निकलो। अंग्रेजी को केवल विदेशी भाषा की ही तरह पढि़ये। लेकिन अपने देश की कम से कम हिंदी समेत दो-तीन भाषाओं का ज्ञान भी रखिए।
भारत को राष्ट्रभाषा देने के लिए अपना प्रयास करें। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति है। विचार करें कि 'हिंदी राष्ट्रभाषा' हो और अंग्रेजी की मानसिकता और गुलामी से हम बाहर निकले।
दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन अपनी भाषा में ही तरक्की कर रहा है।
सारे देश की अपनी राष्ट्रभाषा है। लेकिन भारत में 15% लोगों को अंग्रेजी आती है, यह 85% लोगों से कटी (अलग-थलग) हुई भाषा है। यह गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के लिखे कानून और व्यवस्था की भाषा है।
आइए प्रण लेते हैं, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे। क्षेत्रीय भाषाओं को सम्मान दें। लेकिन अंग्रेजी भाषा हम भारतीयों की पहचान नहीं हो सकती है क्योंकि यह एक विदेशी भाषा है, हमारी जड़े संस्कृति व साहित्य हमारी भारतीय भाषाओं में है, इसी में हमारी आत्मा बसती है।
जब तक अंग्रेजी से छुटकारा हम नहीं प्राप्त कर सकते तब तक सही मायने में हम आजादी के 7 दशकों के बाद भी आजाद नहीं है।
हिंदी और क्षेत्रीय भाषा का विरोध नहीं, विरोध कीजिए अंग्रेजी भाषा की, अंग्रेजी सोच की, अंग्रेजी व्यवस्था की, अंग्रेजी पूंजीवादी सामंतवादी सिस्टम का।
जय हिंद!
धन्यवाद!
~
अभिषेक कांत पांडेय~
अंग्रेजी के गुलाम लोग ही हिंदी और भारतीय भाषाओं का विरोध करते हैं और कुछ लोग भारतीय भाषाओं के आड़ में हिंदी का विरोध करते हैं।
जिस राष्ट्र की आधिकारिक और कामकाजी रूप से कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, उसकी कोई पहचान नहीं। इसलिए हर भारतीयों का कर्तव्य है कि अंग्रेजी की गुलामी से बाहर निकलो। अंग्रेजी को केवल विदेशी भाषा की ही तरह पढि़ये। लेकिन अपने देश की कम से कम हिंदी समेत दो-तीन भाषाओं का ज्ञान भी रखिए।
भारत को राष्ट्रभाषा देने के लिए अपना प्रयास करें। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति है। विचार करें कि 'हिंदी राष्ट्रभाषा' हो और अंग्रेजी की मानसिकता और गुलामी से हम बाहर निकले।
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सारे देश की अपनी राष्ट्रभाषा है। लेकिन भारत में 15% लोगों को अंग्रेजी आती है, यह 85% लोगों से कटी (अलग-थलग) हुई भाषा है। यह गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के लिखे कानून और व्यवस्था की भाषा है।
आइए प्रण लेते हैं, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे। क्षेत्रीय भाषाओं को सम्मान दें। लेकिन अंग्रेजी भाषा हम भारतीयों की पहचान नहीं हो सकती है क्योंकि यह एक विदेशी भाषा है, हमारी जड़े संस्कृति व साहित्य हमारी भारतीय भाषाओं में है, इसी में हमारी आत्मा बसती है।
जब तक अंग्रेजी से छुटकारा हम नहीं प्राप्त कर सकते तब तक सही मायने में हम आजादी के 7 दशकों के बाद भी आजाद नहीं है।
हिंदी और क्षेत्रीय भाषा का विरोध नहीं, विरोध कीजिए अंग्रेजी भाषा की, अंग्रेजी सोच की, अंग्रेजी व्यवस्था की, अंग्रेजी पूंजीवादी सामंतवादी सिस्टम का।
जय हिंद!
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अभिषेक कांत पांडेय~
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