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मे उनमे इनमे मै मे bindu (अनुस्वार) या chandrabindu (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता

  Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार))  या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है।  Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं

भारत की गुमनाम महिला स्वंत्रता सेनानी| कौन Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters

भारत की गुमनाम महिला स्वंत्रता सेनानी कौन?| Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters

गुमनाम नायिका फ्रीडम फाइटर



 भारत की नारी शक्ति का रूप है। भारत की आजादी के लिए उनकी कुर्बानी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भारत की नारी घर-गृहस्थी के साथ देश की बागडोर भी संभाल रही हैं। आजाद भारत के पहले के ​इतिहास के पन्नों में झांके तो पाएंगे कि कई ऐसी भारत की वीरांगनाएं थीं, जो देश को आजादी दिलाने की मुहिम में अंग्रेजों से लोहा लिया, अपने साहस और हिम्मत के बल पर अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी। भारत की गुमनाम महिला स्वंतत्रता सेनानी के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। जिनके बलिदान और त्याग ने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे देश की महिला स्वतंत्रता सेनानियों Bharat ki Gumnam freedom fighters ने  सुख, सुविधा, ऐश्वर्य, आराम को छोड़कर अपना जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया आइए जाने ऐसी महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जो इतिहास के पन्नों से गुम हो गई हैं, देश के प्रति इनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है इसलिए आज हम आपको याद दिलाने आए हैं, उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों भारत की गुमनाम नायिका female freedom fighters के बारे में जो इतिहास के पन्नों में दर्ज तो हैं लेकिन हम उन्हें कम जानत हैंं। 

यह लेख आपके लिए जानकारी वाला है, इसको पढ़कर आप अनुच्छेद, निबंध लिख सकते हैं, अपने विचार को कहीं भाषण आदि में रख सकते हैं। भारत की गुमनाम महिला स्वंत्रता सेनानी| Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters के माध्यम से अपको हम Anuchedlekhan, Education, general knowledge की जानकारी हिन्दी Hindi में प्रदान कर रहे हैं, आशा है कि आपको पसंद आएगा—


Female Freedom Fighters

Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters भारत के नागरिक चाहे वे पुरुष हो या  महिला हो या बुजुर्ग हो या बच्चे सभी ने भारत की आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई है। इस कड़ी हम बताने जा रहे हैं महिला  स्वतंत्रता  सेनानियों  के बारे में, जिनके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं।  हम आपके लिए लाए हैं इतिहास के  झरोखे से उन नामों को जैसे— लक्ष्मी सहगल, कल्पना दत्त Kalpna Dutt, प्रीतिलता वादेदार (Pritilata Waddedar), सुचेता कृपलानी (sucheta kriplani), दुर्गावती (दुर्गा भाभी), राजकुमारी गुप्ता (Rajkumari Gupta), मातंगिनी हाजरा (Hatangini Hazra) Bharat ki Gumnam freedom fighters जिन्हें भुला दिया गया है पर इनका भारत की आजादी के लिए बलिदान अविस्मरणीय है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है-आइए आज पढ़कर इन गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानियों (female freedom fighters) को याद करें-


मातंगिनी हाजरा (Matangini Hazra)

Mahila freedom fighters Nayaka Mahila freedom fighter


कम उम्र में इनका विवाह हो गया और विवाह के 1 साल बाद पति की मृत्यु हो गई। जीवन का उद्देश लगभग समाप्त हो चुका था लेकिन एक विधवा का जीवन जीने वाली  माता मातंगिनी हाजरा ने  खुद को भारत की आजादी के लिए समर्पित कर दिया। अब उनका सपना था- भारत को आजाद कैसे कराया जाए इसलिए उन्होंने  आजादी दिलाने के लिए  कई आंदोलन में सक्रिय भूमिका भी निभाई। महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन में  उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और  गांधी बूढ़ी के नाम से उन्होंने प्रसिद्धि पाई। उन्होंने चौकीदार टैक्स के खिलाफ में चौकीदारी टैक्स विरोध प्रदर्शन किया। इसके लिए जगह जगह पर महात्मा गांधी के आह्वान पर लोग को इकट्ठा कर अंग्रेजों के इस काननू के ​खिलाफ प्रदर्शन किया। 



आपको बता दें कि मातंगिनी हाजरा का जन्म 19 अक्टूबर 1870 को पूर्वी बंगाल के तामलुक ग्राम में हुआ था। आज बांग्लादेश के मिदनापुर जिले के अंतर्गत आता है। 1932 में गांधी जी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाना शुरू कर दिया था। 

गांधी के भारत की आाजदी के आंदोलन से वे तब प्रभावित हुईं, जब एक दिन 1932 में उनकी झोंपड़ी के सामने से गांधीजी के आह्वान पर सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक जुलूस गुजरा तब उन्होंने बंगाली रीति संस्कृति के अनुसार जुलूस का शंख बजाकर स्वागत किया। जुलूस देखकर उनके मन में एक टीस पैदा हुई, उस जुलूस में कोई महिला नहीं थी। तब उस समय खुद ही उस जुलूस में शामिल हो गइ। उनकी उम्र 62 साल की थी। उनके मने इस उम्र में देश प्रेम का यह जब्जा उस समय बंगाल में गांधी जी के आंदोलन को वहां पर लोग से जोड़ा। मातंगिनी हाजरा का मिशन गांधी के आदोलन के साथ जुड़ गया। 

  सन 1942 में गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हाथ में तिरंगा लिए और अंग्रेज भारत छोड़ो का उद्घोष करती हुयी भीड़ का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़ीं लेकिन निर्दयी-क्रूर-मानवता के दुश्मन अंग्रेजों ने उन पर गोली चला दी,  मातंगिनी हाजरा देश के लिए शहीद हो गईं। उनकी हिम्मत और  देश के प्रति त्याग-समर्पण की भावना को हम भूल नहीं सकते हैं। उस समय उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए लाखों महिलाओं को प्रेरित किया।


 

प्रीतिलता वादेदार (Pritilata Waddedar)

Women Indian freedom fighter प्रीतिलता का जन्म 5 मई 1911 को चटगाँव में हुआ था। जो आज बांग्लादेश (अविभाजित भारत) में हुआ था।
स्कूली शिक्षा के दौरान प्रीतिलता एक टैलेंटेड स्टूडेंट्स के रूप में जानी जाती थी। कोलकाता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की  पढ़ाई पूरी की। ‘चटगांव शस्त्रागार काण्ड’ की घटना  प्रभावित होकर  क्रांतिकारी सूर्यसेन के क्रांतिकारी दल की  सदस्य बन गयीं और देश की आजादी के संग्राम में अपना योगदान देने लगीं।
 इसी कड़ी में 24 सितंबर 1932 को   
प्रीतिलता वादेदार (Pritilata Waddedar) ने शूरसेन के साथ मिलकर यूरोपीय क्लब में हमला किया था। आपको बता दें कि अंग्रेजों की भेदभावपूर्ण नीति उस समय पूरे भारत में लागू थी। 
उस समय शूरसेन की क्रांतिकारी दल अंग्रेजों के इस भेदभाव के खिलाफ एक्शन में आ गया। दरअसल यूरोपीय क्लब जहां पर अंग्रेज लोग इकट्ठा होते थे, उन्होंने भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए उस क्लब के प्रवेश द्वार पर  “डॉग्स एंड इंडियन्स नॉट अलाउड” (Dogs and Indians not allowed) का बोर्ड लगा दिया था।  इससे नाराज क्रांतिकारी शूरसेन और प्रीतिलता के साथ क्रांतिकारी दल के सदस्यों ने  हथियार के साथ उस क्लब में घुस गए। उनका सामना  अंग्रेजी सिपाहियों से हुआ। सिपाहियों की गोली से घायल प्रीतिलता पोटेशियम साइनाइड  खाकर अपने जीवन को समाप्त कर लिया क्योंकि वह किसी भी कीमत में अंग्रेज सिपाहियों की पकड़ में नहीं आना चाहती थी।   अंग्रेजों के खिलाफ उनका संघर्ष और  बलिदान लोग के लिए मिसाल बन गई।  उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पास से एक चिट्ठी मिली थी, जिसमें  लिखा था कि भारत की आजादी के संघर्ष को जारी रखा जाए।

राजकुमारी गुप्ता (Rajkumari Gupta)



महिला स्वतंत्रता सेनानी राजकुमारी गुप्ता गांधी जी और चंद्रशेखर आजाद जी के विचारों से बहुत प्रभावित थीं। उस समय अपने पति मदन मोहन के साथ मिलकर स्वतंत्रता के आंदोलन की अलख जगा रही थी और गांधीजी के विचारों को जन-जन तक पहुंचा रही थीं। चंद्रशेखर आजाद की क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित राजकुमारी गुप्ता अंग्रेजों की नजरों से ​छिपकर क्रांतिकारियों के लिए सूचना देने और उन्हें हथियार बांटने का काम करती थीं ताकि अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की मुहिम चलती रहे। चंद्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी के सदस्य के रूप में राजकुमारी जी संगठन से भी जुड़ी थीं। क्रांतिकारी गतिविधियों में वे सक्रिया भूमिका निभाई रही थी। 
आपको बता दें कि काकोरी कांड में क्रांतिकारियों को हथियार पहुंचाने का काम राजकुमारी गुप्ता ने ही किया था। भारत की आजादी के लिए उनका उठा हर कदम क्रांतिकारियों के इरादे को मजबूत बनाया। काकोरी कांड में क्रांतिकारियों को हथियार पहुंचाने का काम राजकुमारी गुप्ता ने किया था। यह बात तब पता चली जब अंग्रेजों द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।  अंग्रेजों के खिलाफ और भारत की आजादी के लिए काम करने की वजह से उनके ससुराल वालों ने  उनका बहिष्कार कर दिया था। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी देश की आजादी के लिए उठे उनके कदम रुके नहीं। राजकुमारी गुप्ता के बारे में यह बातें  ‘इन सर्च ऑफ़ फ्रीडम: जर्नीज़ थ्रू इंडिया एंड साउथ-ईस्ट एशिया‘ पुस्तक में प्रकाशित हुई है।

दुर्गावती (दुर्गा भाभी)



आपको बता दें कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय गांधी जी और शेखर आजाद, भगत सिंह आदि के विचारों से भारत की जनता  प्रभावित हो रही थी। अब आजादी के लिए क्रांतिकारी विचारधारा खुलकर सामने आ रही थी। ऐसे में क्रांतिकारियों की मदद से भारत की जनता कर रही थी। चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, दुकानदार हो या सरकारी नौकरी करने वाला सभी अपने अपने तरीके से  क्रांतिकारियों की मदद करने का काम करना अपना देश के प्रति कर्तव्य समझते थे क्योंकि भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देने का आंदोलन शुरु हो चुका था। मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली दुर्गा भाभी के योगदान को देशवासी कभी नहीं भूल सकते हैं। दुर्गा भाभी यानी दुर्गावती का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था।
 क्रांतिकारी गतिविधियां  इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ और पूरे उत्तर प्रदेश के साथ भारत के अन्य प्रदेशों में बहुत तेजी से अंदर ही अंदर फैल रह था। जलिया वाला बाग हत्याकांड के बाद से अंग्रेजों का क्रूर चेहरा भारतीयों के सामने नजर आ चुका था। भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाख उल्ला जैसे क्रांतिकारियों के मन में क्रांति की ज्वाला भड़क रही थी। देश में जगह जगह क्रातिकारी घटनाएं अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था। देश के क्रांतिकारियों ने भूमिगत कई संगठन बानाए। अंग्रेज इन संगठनों के खिलाफ कार्यवाई करने के लिए अपने जासूस छोड कर रखे थे, अफसोस कुछ गद्दार हिंदुस्तानी अंग्रेजों का साथा दे रहे थे लेकिन देश देशभक्तों की कमी नहीं थीं। भारत के नागरिक क्रांतिकारियों का हर तरह से उनका सपोर्ट कर रहे थे।  जहां सूचनाओं के आदान-प्रदान करने के लिए भारत के कई नागरिक अंदर ही अंदर अंग्रेजों के खिलाफ योजनाएं बनाते थे। ऐसे में दुर्गा भाभी भी क्रांतिकारियों के लिए महत्वपूर्ण सूचना पहुंचाती थीं। क्रांतिकारियों  की मदद करती थी ताकि वे अंग्रेजो के खिलाफ  आजादी की लड़ाई लड़ सके अंग्रेज कमजोर हो जाए।

दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और  सुखदेव की मदद की


आपको बता दें कि दुष्ट अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या के मामले में  क्रांतिकारी भगत सिंह और सुखदेव को अंग्रेज खोज रहे थे।  तब दुर्गा भाभी ने चोरी-छिपे अंग्रेजों से छिपकर भगत सिंह और सुखदेव को कोलकाता भेजने की मदद की थी। 


अंग्रेज क्रूर अफसर सांडर्स की हत्या किसने की थी?  

आपको बता दें कि लाला लाजपत राय अंग्रेजों के खिलाफ शांतिपूर्वक जुलूस निकाल रहे थे, तभी अंग्रेज अधिकारी सांडर्स ने लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी। इस कारण से लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और 18 दिन बाद इलाज के दौरान 17 नवंबर 1988 को वीरगति को प्राप्त हो गए हैं।

लाला लाजपत राय के इस मौत के लिए सांडर्स को जिम्मेदार ठहराया गया और लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह और सुखदेव ने योजनाएँ बनाईं।


सांडर्स जब लाहौर के पुलिस हेड क्वार्टर से बाहर जा रहे थे तभी क्रांतिकारी भगत सिंह और राजगुरु ने उन पर गोलियाँ चला दी। आपको बता दें कि जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर चमनलाल ने अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र किया है कि सबसे पहली गोली सुखदेव ने सांडर्स पर चलाई थी और दूसरी गोली भगत सिंह ने चलाई थी। अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की मौत के बाद अंग्रेज बौखला गए और फिर क्रांतिकारी भगत सिंह और राजगुरु को गिरफ्तार करने के लिए सर्च अभियान शुरू कर दिया लेकिन तभी दुर्गा भाभी ने उन्हें कोलकाता भेजने में सहायता की।

दुर्गा भाभी (Durga Bhabhi) बहुत सहासिक महिला थीं और कई मौके पर उन्होंने बंदूक चलाकर अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया था। आज़ादी के बाद चकाचौंध की दुनिया से अलग रहने वाली दुर्गा भाभी का देहांत 14 अक्तूबर, 1999 को गाजियाबाद में हो गया। आज़ादी के लिए उनका महत्वपूर्ण योगदान हम कभी भी नहीं भूल सकते हैं।

सुचेता कृपलानी (sucheta kriplani)

फ्रीडम फाइटर


 सन 1940 में सुचेता कृपलानी को महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत  सत्याग्रह के लिए चुना था। सुचेता कृपलानी  का  जन्म 1908 में पंजाब के अंबाला शहर में हुआ था। 
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की।  पढ़ी-लिखी सुचेता कृपलानी एक ऐसी महिला थी चाहती तो वह सरकारी पद चुनकर  ऐसो आराम की जिंदगी जी सकती थी लेकिन उनके अंदर देश के प्रति प्रेम और समाज को बदलने की चाहत थी इसलिए उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का रास्ता चुना।
भारत की आजादी के संघर्ष में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया इसलिए महात्मा गांधी ने भी उन्हें व्यक्तिगत तौर पर सत्याग्रह के लिए आग्रह किया था। सुचेता कृपलानी महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित रही और उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो तथा करो मरो आंदोलन के समय अंडर ग्राउंड तरीके से भूमिगत स्वयंसेवक बल की स्थापना की। उस समय महिलाओं को आत्मरक्षा और हथियार संचालन के साथ प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण उन्होंने इस संगठन के जरिए दिया।  अंग्रेजो के खिलाफ उनकी इन गतिविधियों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ सक्रिय आंदोलन जारी रखा। 

भारत स्वतंत्र हुआ तो अपनी काबिलियत के बल  उन्हें  1963 से 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री  बनने का गौरव प्राप्त हुआ। इस तरह किसी राज्य की प्रथम मुख्य महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव सुचेता कृपलानी
 नाम है। 

अरुणा आसिफ अली

भारत की महिला स्वतंत्रता सेनानियों में अरुणा आसिफ अली का नाम भी आता है। अरुणा जी का जन्म 16 जुलाई 1909 में पंजाब में हुआ था। इनका विवाह आसिफ अली से हुआ था। शादी के बाद इनका नाम अरूणा आसिफ अली हो गया। अरूणा और आसिफ अली दोनों दंपतियों ने भारत की आजादी के संघर्ष में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। 1930 में गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर नमक आंदोलन में सक्रिय भूमिका इन्होंने निभाई। इस आंदोलन में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 1 साल तक उन्हें सजा भी दी गई। इसके बाद भी उनका हौसला टूटा नहीं और आजादी के आंदोलन के संघर्ष में फिर सक्रिय हो गई। उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराया। इस साहस के काम से अंग्रेज नाराज हो गए और उनकी गिरफ्तारी के लिए ₹5000 का इनाम रखा गया। लेकिन अंग्रेज अरुणा को गिरफ्तार करने में नाकामयाब रहे। आपको बता दें कि इनके पति आसिफ अली ने असेंबली बम कांड के समय भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की तरफ से मुकदमे में पैरवी भी की थी। पति—पत्नी दोनों ही भारत की आजादी के संघर्ष में तब तक लगे रहें, जब तक भारत को आजादी नहीं मिल गई। आजाद भारत में आसिफ अली को अमेरिका में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया। यही नहीं 1964 में अरुणा को लेनिन शांति पुरस्कार और 1991 जवाहरलाल नेहरु पुरस्कार से भी नवाजा गया। 29 जुलाई 1996 को अरोड़ा जी का देहांत हो गया। Freedom Fighters अरुणा जी का योगदान अविस्मरणीय है।


 


कल्पना दत्त Kalpna Dutt



क्रांतिकारियों की कहानियां और उनके विचारों को पढ़कर बचपन में कल्पना दत्त क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। क्रांतिकारी  महिला स्वतंत्रता सेनानी कल्पना दत्त का जन्म 27 जुलाई, 1913 उस समय के अविभाजित चटगांव जो कि बंगलादेश में था, वहां हुआ था।  उस समय वहां अंग्रेजो के खिलाफ उग्र क्रांति की मशाल जलाने वाले क्रांतिकारी सूर्यसेन के क्रांति दल में कल्पना जी ने सदस्यता ग्रहण की।  
कल्पना ने क्रांतिकारी सूर्यसेन के साथ मिलकर अंग्रेजों की अदालत भवन और जेल की दीवार को उड़ाने की प्लानिंग की थी लेकिन इस योजना को पूरा होने से पहले ही अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई थी।  अंग्रेज ने कल्पना और क्रांतिकारी सूर्यसेन  के साथ उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया।  स्वतंत्रता सेनानी कल्पना को उम्र कैद की सजा हुई जबकि सूर्य सेन और उनके साथियों को अंग्रेजों ने फांसी  की सजा दी। महात्मा गांधी और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के विशेष प्रयासों से कल्पना जी को जेल से बाहर  लाया गया। 
इसके बाद वे कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।  आजादी मिलने के बाद सन् 1979 में कल्पना को वीर महिला की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। महिला स्वतंत्रता सेनानी कल्पना  के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। क्योंकि  एक महिला होते हुए भी उन्होंने अपने साहस को नहीं छोड़ा देश को आजाद कराने के लिए क्रूर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई थी। 

लक्ष्मी सहगल Laxmi Sehagal


 नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजादी की लड़ाई के संघर्ष से प्रभावित होकर उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से इस संघर्ष में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। बात उस समय की है जब लक्ष्मी सहगल मेडिकल प्रैक्टिस के लिए सिंगापुर गई थी और तभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस से उनकी मुलाकात हुई थी। उन्होंने भारत की आजादी के लिए कुछ करने की इच्छा नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सामने  कही। उनकी बातों से नेताजी बहुत प्रभावित हुए।  नेताजी ने आजाद हिंद फौज में रेजीमेंट  बनाया जिसका नाम लक्ष्मी बाई रेजीमेंट रखा गया। इस रेजिमेंट में 500 महिला सैनिक थे। लक्ष्मी सहगल के नेतृत्व में लक्ष्मी बाई रेजिमेंट ने अंग्रेजों की सेना से कई महत्वपूर्ण युद्ध किया। इसके अलावा सिंगापुर में जब वे कुछ समय के लिए थी तो ब्रिटिश आर्मी के लिए लड़ रहे भारतीय सैनिकों के लिए  हॉस्पिटल  खोला और  भारतीय मूल के सैनिकों के उपचार का बीड़ा भी उठाया था।   भारत के आजादी के बाद भी वे सक्रिय रूप से  देश की सेवा करती रही। भोपाल गैस कांड के घायलों की मेडिकल सहायता अपनी मेडिकल टीम के साथ उन्होंने की।
 1984 में सिख दंगों के समय कानपुर में शांति प्रयास में सरकार की सहायता की। भारत सरकार ने उनकी  देश सेवा  को सम्मान देते हुए पद्म विभूषण अवार्ड से 1998 में सम्मानित किया।  सन 2012 में  आजाद हिंद फौज की सैनिक  लक्ष्मी सहगल  (Lakshmi Sahga) का निधन हो गया। 

गुमनाम स्वतंत्रताय सेनानी लेख में आपने आज निम्नलिखत के बारे में पढ़ा है— लक्ष्मी सहगल, कल्पना दत्त Kalpna Dutt, प्रीतिलता वादेदार (Pritilata Waddedar), सुचेता कृपलानी (sucheta kriplani), दुर्गावती (दुर्गा भाभी), राजकुमारी गुप्ता (Rajkumari Gupta), मातंगिनी हाजरा (Hatangini Hazra) Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters के माध्यम से अपको हम Anuchedlekhan, Education, general knowledge की जानकारी हिन्दी Hindi भाषा में दिया है, आपको पसंद आ रहा है। इस लेख को शेयर करें। धन्यवाद।

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MCQ Ras Hindi class 10 cbse Update 2023 MCQ Ras Hindi class 10 cbse Ras Hindi MCQ class# 10 CBSE board new# syllabus objective questions. New gyan dotcom Gmail important question topic ras रस पर क्वेश्चन आंसर यहां दिये जा रहे हैं।‌  If you have any problem of the topic of Hindi Ras write a comment, I will solve your problems within 24 hours. You have know that  multiple choice question coming Hindi grammar section class of 10.  Ras,  Rachna ke Aadhar per Vakya, Pad Parichy,  aur Vachy. रस, रचना के आधार पर वाक्य, पद परिचय और वाच्य है। यहां पर रस पर आधारित MCQ क्वेश्चन दिए जा रहे हैं यूपी बोर्ड परीक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा कई प्रतियोगी परीक्षा के लिए भी रस पर MCQ  प्रश्न काफी आते हैं। Given 10 topic question answer objective type. latest 2022-23 रस के बहुविकल्पी प्रश्न के उत्तर भी लिखे हुए हैं। १. निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए चार विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ सही विकल्प चुनिए। रस  को काव्य की आत्मा माना जाता है। " जब किसी नाटक, काव्य में आनंद की अनुभूति होती है त

Laghu Katha Lekhan CBSE Board

     लघु कथा कैसे लिखें, उदाहरण से समझें CBSE board hindi  प्रस्थान बिंदु के आधार पर लघु कथा (laghu katha)  लिखना। CBSE Board 9th class Laghu Katha lekhan दसवीं बोर्ड की कक्षा 9 के सिलेबस में और कई  बोर्ड की परीक्षा में इस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं।  (new syllabus 2022 Laghu Katha lekhan)    दिए गए प्रस्थान बिंदु (prasthan Bindu) का मतलब है कि दो या चार लाइन लघुकथा के दिए होते हैं। उसके बाद आपको 80 से 100 शब्दों में लघुकथा को पूरा करना होता है। उसका एक शीर्षक (title) लिखना होता है।  नई शिक्षा नीति 2020 (New Education Policy) में भाषा में रचनात्मक लेखन (Creative Writing) को बढ़ावा दिया गया है। इसलिए  हिंदी Hindi, अंग्रेजी, मराठी  उर्दू किसी भी भाषा के पेपर में संवाद लेखन, लघुकथा, लेखन अनुच्छेद, (anuchchhed lekhan) लेखन, विज्ञापन लेखन, (Vigyapan lekhan) सूचना लेखन (Hindi mein Suchna lekhan) जैसे टॉपिक में नई शिक्षा नीति के ( new education policy 2021) अंतर्गत सिलेबस में रखे गए हैं।  लघुकथा लेखन 9 व 10 की परीक्षा में पूछा जाता है Laghu katha lekhan in Hindi in board examination

भारतीय आजादी के गुमनाम नायक

भारतीय आजादी के गुमनाम नायक bhaarateey aajaadee ke gumanaam naayak 2022 आज हम अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा सकते हैं, पढ़ लिख सकते हैं अपने मनपसंद का करियर चुन सकते हैं, क्योंकि हम आजाद हैं और इस आजादी के लिए वीरों ने अपनी आहुति दी है, पर जब स्वतंत्रता सेनानियों के नाम बताने की बारी आती है तो हम सिर्फ गिने-चुने नाम ही बता पाते हैं, जबकि हकीकत यह है कि आजादी सिर्फ कुछ लोगों के बलिदान से नहीं मिली बल्कि इसके लिए बहुतों ने अपनी जान गंवाई। इनमें से कई तो गुमनामी की अंधेरों में खो चुके हैं। हम आपको ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी-  आजादी के गुमनाम नायक हम बताने जा रहे हैं आजादी के महानायक जिनको हम भूल गए हैं-- कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ने वाले कन्हैयालाल कई बार अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाने के आरोप में गिरफ्तार किए गए और अंग्रेजों के जुल्म का शिकार हुए पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी हर बार दुगनी ताकत के साथ अंग्रेजों से मुकाबला किया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजा

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लघु-कथा' CBSE BOARD CLASS 9 NEW SYLLABUS LAGHU KATHS LEKHAN

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