Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
झूठ को किस तरह से पहचाने Tip
झूठ यानी माया, ये माया जीवन में इंसानों को धोखा दे रहा है। ये झूठ कितने को बुरा साबित कर देता है। इस झूठ के कारण कितनी जिंदगियां तबाह हो जाती हैं। हम इंसान है, हमें जीवन के दुखों से डँटकर सामना करना चाहिए। झूठ को पहचाना जा सकता है बस इसे समझने की फेर है।
आइए कुछ तर्कों से जाने की अंत में सच की ही जीत होती है। इसलिए हर हाल में हम लोग को सच के साथ खड़ा होना चाहिए।
*सत्य के साथ चलना जीवन जीने की कला*
जो सत्य के रास्ते में चला उसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सत्य के मार्ग में हमेशा काँटे होते हैं, लेकिन इन काँटों में उसे जीवन की सच्चाई यानी जीने का ढंग पता चलता है, कहने का मतलब हैं कि सच के रास्ते चलने वाला आदमी सुकून की जिंदगी जीता है।जीवन की समस्या को लेकर परेशान नहीं रहता है। वह सदैव आगे की सोचता है। आपने अनुभव जरूर किया होगा कि सच बोलते हैं तो आपका अंतर्मन खुश हो जाता है। आप भय मुक्त हो जाते हैं।
*झूठ बोलना यानी असत्य का साथ देना*
झूठ जीवन का ऐसा कर्ज है, जो कष्ट रूपी ब्याज की तरह पूरी जिंदगी परेशान करता रहता है।
सच का साथ देने वाला असल में सूझ-बूझ से जिंदगी के उलझन को सुलझाता हैं। रामजी ने सत्य का साथ दिया जबकि रावण पूरी जिंदगी असत्य के साथ खड़ा रहा है। रामजी ने रावण के अंहकार और उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए रावण का वध किया।
रावण घमंड और अत्याचार की सोच में था, उसके लिए जिम्मेदारी उसका झूठ था। झूठ पर टिका उसका ज्ञान उसे नहीं बचा पाया। इस तरह असत्य का अंत हुआ। उस सोच का अंत हुआ जिसका मतलब रावण था। इस तरह रामायण बुराई का प्रतीक बन गया।दोस्तो मैंने कहा कि सत्य को अपनाने वाले इंसान को असत्य के कारण थोड़ा कष्ट सहना पड़ता है लेकिन सत्य को धारण करने वाला इंसान इतना मजबूत होता है कि वे इन तरह की परेशानियों से घबराने वाला नहीं है।
सभी महापुरूषों ने कभी भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा उन्हें कितने कष्ट सहने पड़े, लेकिन उन्होंने सत्य को स्थापित किया है। आज सत्य के इसी आधार पर दुनिया चल रही है। हम लोग समाज में ये सुनते हैं कि झूठ और धोखा देकर किसी ने खूब धन-दौलत जमा कर लिया है। इसलिए आप सोचते हैं कि उस इंसान का जीवन बहुत सुकून और सुखों से भरा है लेकिन ऐसा नहीं, उसके मन में सबकुछ छिन जाने को डर भरा होता है, वह व्यक्ति बेचैनी अपराध बोध लिए हुए जीवन जीता है और तरह-तरह की शारीरिक रोगों को भी मुफ्त में पाता है। जाहिर है जब सत्य रूपी मन नहीं होगा तो शरीर कैसे स्वस्थ रहेगा।
उसने ये एशोअराम धोखे और झूठ के बल पर खड़ा किया है। अपने इस झूठ के बुनियाद पर खड़ा किया हुआ उसकी सफलता की इमारत की नींव बहुत कमजोर है, सत्यता की हवा को भी वह बर्दास्त नहीं कर पाएगी और एक पल में सबकुछ धवस्त हो जाएगा।
*सच का साथ देने वाला मार्गदर्शक होता है
सत्यता को सम्मान मिलता है*
दोस्तो! जो सच का साथ देता है और किसी कारण से प्रतडि़ता या उपेछित रहता है, सच मानिए एक दिन उसे भी न्याय मिलता है।
अभी हाल का उदाहरण है कि उत्तर प्रदेश में अनामिका शुक्ला नाम की एक महिला की जगह पर उसके फर्जीअलग-विद्यालयों में सरकारी नौकरी कर रहे थे। लेकिन जब सत्यता सामने आई तो सबका भांडा फूटा। फर्जीवाड़े की इस दास्तान में कई भ्रष्ट लोग जो सिस्टम की कमियों के कारण छिपे थे, वे पकड़े गएँ।
यानी अनामिका शुक्ला सच्चाई के रास्ते पर थी जबकि उसके नाम व उसके प्रमाणपत्र के सहारे फर्जी नौकरी पाने वाले भ्रष्ट पकड़े गए। एक सत्य ने 100 झूठ बोलने वाले यानी भ्रष्ट लोगों की पोल खोल कर दिया।
बात यहां ये समझें कि ये फर्जी काम करने वाले लोग कई तरह के झूठ बोलने व भ्रष्ट काम करने में पहले से ही माहिर होते हैं लेकिन एक सशक्त सत्य ने ऐसे लोगों के चेहरे बेनकाब कर दिए।
कहने का मतलब है कि हमें सच के लिए हमेशा लड़ते रहने चाहिए। झूठ को हावी नहीं होने देना चाहिए। झूठ को देखकर चुप नहीं रहना चाहिए। ये झूठ भ्रष्टाचार, लालच, धोखे और अपराध को जन्म देता है। इसीलिए दोस्तो 100 झूठ से अच्छा अपना प्यारा एक सत्य ही सही है। झूठ की चादर से सच को नहीं ढाका जा सकता है। वहीं इस मामले में ईमानदार व योग्य अनामिका शुक्ल को सम्मान के साथ उसे सरकारी नौकरी मिली।
*इसीलिए पढ़ाया जाता है स्कूलों में सत्य के रास्ते पर चलना*
दोस्तो! इसीलिए बच्चों को सत्य की राह पर चलने की शिक्षा दी जाती है। यही सच्चाई की आदत उसे एक बेहतर आदमी बनाता है। झूठ की बैसाखी यानी भ्रष्ट तरीके से जीवन जीने की उसे जरूरत ही नही पड़ती क्योंकि बचपन से ही उसने शिक्षा पाई है कि सत्य ही जीवन का आधार है, तो उसका हर प्रयास ईमानदार प्रयास हुआ।
उसने अपनी असफलता को हार नहीं माना है बल्कि तैयारी की कमी माना। इसीलिए तो वह इंसान सत्यता के मार्ग पर चलते हुए सत्यता से ही इस बेईमानी वाली दुनिया में अपना मुकाम हासिल करता है। इसीलिए सत्यता की नींव बच्चों में बचपन से पड़नी चाहिए। संस्कृति व धर्म सच्चाई के रास्ते पर चलने की ही शिक्षा देती हैं। स्कूल के पाठ्यक्रम में सत्य की शिक्षा देना और नैतिक जीवन को ऊंचा बनाने की सीख दी जाती है।
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