मातृभाषा की कविता में एजुकेशन क्यों जरूरी है सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

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मातृभाषा की कविता में एजुकेशन क्यों जरूरी है


छोटे बच्चों को हिंदी कविता (hindi poetry teaching method) के माध्यम से उन्हें बहुत सारी जानकारियां दी जा सकती हैं। prakhar chetna में इसकी जानकारी दी जा रही है।

एजुकेशन में मात्र भाषा क्यों जरूरी है


बच्चे की मातृभाषा (#mothertoungue) चाहे हिंदी #hindi हो या कोई अन्य भाषा कविता के माध्यम से उसे कई तरह की आस पास की जानकारियां उपलब्ध कराई जा सकती हैं। आज एजुकेशन में मातृभाषा जरूरी है। कक्षा 1 से 5 तक की क्लास में कविता के माध्यम से पढ़ाई कराई जाती है। देश-राष्ट्र और संस्कृति से जोड़ने के लिए कविता एक प्रभावशाली माध्यम है। 

(New Indian educatetion policy) भारत सरकार की शिक्षा नीति में भाषा के साथ-साथ गणित और विज्ञान जैसे बोझिल विषयों को भी प्राइमरी में कविता के माध्यम से पढ़ाने की बात कही जाती है। हाय इस लेख के माध्यम से जाने की किस तरीके से हम कविता के माध्यम से बच्चों में पढ़ाई के स्तर को और बढ़ा सकते हैं और पढ़ाई के प्रति लगाव पैदा कर सकते हैं।

मातृभाषा  से आती है देशभक्ति की भावना #deshbhakti

छोटे बच्चों को मातृभाषा की कविता के माध्यम से देश भक्ति की भावना का संचार किया जाता है। बच्चा जब अपने लिए संस्कृति और वहां के भूगोल को समझेगा तभी तो वह धीरे-धीरे अपने देश से जुड़ाव रखेगा। उम्र के साथ व समझदार होगा और अपनी पढ़ाई-लिखाई अपनी मेहनत और काबिलियत से देश की तरक्की में अपना योगदान देगा। 
देश के लिए कुर्बानी देने वाले वीर शहीदों की कविता में गुणगान सुनता है तो उसके अंतर्मन में देश के लिए कुछ करने  प्रेरणा से भर जाता है।

 बच्चा कविता के माध्यम से अपने देश की संस्कृति रीति-रिवाजों परंपराओं से  जुड़ता है और उस से प्रेरित होता है।  बच्चा कविता के माध्यम से देश की भौगोलिक स्थिति के बारे में धीरे-धीरे जानने लगता है और उसकी ललक देश को जानने में बढ़ जाती है। उत्तर में हिमालय पर्वत, दक्षिण दिशा में बेहतर सागर, पश्चिम में मरुस्थल, बंगाल के सुंदर डेल्टा वन, पूर्वोत्तर के पहाड़, गंगा, नर्मदा, यमुना जैसी नदिया के बारे में सोच समझकर बच्चा जिज्ञासा प्राप्त करता है। 
#cbseartintregation सीबीएसई बोर्ड में भी आर्ट इंटीग्रेशन के माध्यम से इस बात पर बल दिया गया है कि बच्चा कविता व कहानी के माध्यम से हर एक भारत के राज्यों की संस्कृति और परंपरा के बारे में जानेगा समझेगा।

नैतिक बातों का विकास कविता से ही किया जा सकता है


मॉडर्न युग में हम जी रहे हैं, इस समय हमारा जीवन मशीनों से घिरा हुआ है। ऐसे में बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को सही समय नहीं दे पाते हैं। बच्चे क्या अकेलापन  केवल स्कूल में ही दूर हो पाता है, ऐसे में स्कूल में कविता के माध्यम से शिक्षा उनके अंदर नैतिकता का विकास किया जा सकता है।
 कोई भी समाज आगे तभी बढ़ता है जब उसके नागरिकों में टैलेंट के साथ दया, करूणा  और ईमानदारी के भावना हो। 
अगर समाज के नौनिहालों में संस्कार और कर्तव्य की भावनाओं का बीजारोपण कर दे तो आने वाले समय में देश उन्नति और तरक्की के शिखर पर पहुंच जाएगा। इसलिए इन परिस्थितियों से बचने के लिए शिक्षा व्यवस्था में कविता के माध्यम से नैतिकता का पाठ पढ़ाना बहुत जरूरी है।
बच्चे स्वभाव से चंचल होते हैं, उन्हें किसी भी दिशा में मोड़ा जा सकता है। आजकल के बच्चे टीवी चैनल में ऐसे हिंसक कार्यक्रम देख कर मनोवैज्ञानिक प्रभाव के कारण वे दूसरे बच्चों के साथ हिंसा का व्यवहार करने लगते हैं। हिंसक और भेदभाव वाले टीवी के कंटेंट को हम अपने बच्चे से दूर रख सकते हैं। लेकिन आज के समय में यह हो पाना बड़ा मुश्किल है क्योंकि सभी जगह ऐसी हिंसक और यौन प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने वाले कंटेंट इंटरनेट के माध्यम से बच्चों की पहुंच में आ सकती है।
 इसलिए अपने बच्चे पर ध्यान देना जरूरी है और उन्हें नैतिक बातों को उनके पढ़ाई के माध्यम से बताना उतना ही जरूरी है। कविता इस माध्यम में सबसे सशक्त है क्योंकि बच्चा कविता की पंक्तियों को गाकर, बोलकर और संगीत के माध्यम से प्रभावशाली ढंग से सीता है।

विद्यालय में बच्चों को अच्छे व्यवहार की सीख दी जाती है

विद्यालय (school) ऐसी जगह है, जहां पर बच्चे आपस में मिलकर सामाजिक जीवन जीना सीखते हैं। सामाजिक दायित्व और भाईचारा की यह भावना उन्हें स्कूल में सबसे पहले सीखने को मिलती है, जिसे वे अपने जीवन में हर जगह अपनाते हैं। स्कूल में न कोई अमीर होता है न कोई गरीब होता है, स्कूल में सब समान होते हैं, इसीलिए वहां पर पहनावे के रूप में ड्रेस कोड होता है ताकि सभी एक जैसे लगे।
 हम जानते हैं कि आज फैशन की संस्कृति और दिखावे की संस्कृति जो बड़ों में है, वह धीरे-धीरे बच्चों में भी आने लगता है। लेकिन स्कूल इससे अलग बच्चों को समानता का नियम सिखाता है। 
बच्चा (children) स्कूल में अध्ययन करते करते वक्त समझने लगता है कि उसका जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए। बच्चा अपने सामाजिक वातावरण से और अपने स्कूल के वातावरण से तुलना करके अच्छी आदतों को अपनाता है। जैसे, दूसरों की मदद करना, किसी का मजाक नहीं उड़ाना, किसी को धोखा नहीं देना, झूठ नहीं बोलना, किसी से ईर्ष्या नहीं रखना, इन सब बातों को बच्चा स्कूल से ही सीखता है। एक अच्छी आदत का विकास उसके अंदर स्कूल से ही जन्म लेता है।

बच्चा स्कूल में किताबी ज्ञान (book knowledge) ही नहीं प्राप्त करता है। वह किताब के माध्यम से और शिक्षकों के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान को भी प्राप्त करता है। 
ऐसे संवेदनशील बच्चे जब बड़े होते हैं, तो वे जानते हैं कि समाज में अन्याय, अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अपने आपको हमेशा तैयार रखना है। इस तरह के बच्चों का व्यक्तित्व बहुत ही शानदार होता है। ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं तो खुद को इंसान के रूप में प्रस्तुत करते हैं और इंसानियत की मिसाल बनते हैं।

हमारा समाज कुछ इस तरह से डिजाइन हैं, यहां वर्गभेद सबसे अधिक है। यहां प्रतिभाओं को कुचल भी दिया जाता है। लेकिन इन सबके बावजूद भी बालक अपने जीवन में जब वह प्रतिस्थापित होता है तो समाज के बनाए गए गलत नियमों के खिलाफ लड़ता है, स्वामी विवेकानंद,  ज्योतिबा फूले, कबीरदास जैसे कई नाम हैं।  आज जितने भी महापुरुष हुए हैं उन्होंने इस समाज में कुछ ना कुछ सुधार भी किए हैं। 
स्कूल #school में पढ़ने वाला बच्चा जब अपने व्यवहारिक जीवन से जुड़ता है, इन्हीं हजारों महापुरुषों के आदर्श पर चलता है और अपने समय की बुराइयों को दूर करता है। स्कूल जाने वाला बालक  जब भावी जिंदगी में प्रवेश करता है, तो वह किताबी ज्ञान के साथ व्यवहारिक जीवन को अपनाकर अपने जीवन में आगे बढ़ता है लेकिन उसका फैसला हमेशा ईमानदारी और सत्य का साथ देने वाला होता है।
 एक ही व्यवहारिक बातों को वह अपने स्कूली जीवन में पढ़ा होता है, जिसे वह अपने भावी जीवन में अपनाता है। 
कविताओं (#hindi poetry) में साहस और संघर्ष की जो कथा, उसने पढ़ी थी, बचपन में अपनी कक्षाओं में उससे भी वह प्रेरित होता है। जीवन में अपने वाले संघर्ष का सामना व अपनी बुद्धि और साहस के साथ करता है। 

कविताएं उसे आसपास के जीवन से ही जोड़ती हैं

#Hindipoetry

छोटा बच्चा जब अपने घर से स्कूल की चारदीवारी के अंदर आता है तो वहां के नियम और कानून को बदले धीरे समझने लगता है लेकिन जब वह पढ़ाई करता है तो उन कविताओं और कहानियों के माध्यम आसपास के जीवन के बारे में भी जानता है। उसकी जिज्ञासा बढ़ती है वह धीरे-धीरे अपनी तर्क शक्ति का इस्तेमाल करके बहुत से प्रश्न पूछना शुरु करता है और उसकी जिज्ञासा जितना विस्तृत होती है उसका श्रेय उसकी मातृभाषा की कविताओं में ही छिपा है। कहने का मतलब है कि बच्चा जिस मातृभाषा में पहली बार बोलता है और फिर उस मातृभाषा में वह जल्दी से कविताओं को ग्रहण भी करता है, इस तरह से जीवन को नियंत्रित करने वाली बातें सीखता है, जैसे दूसरों की सहायता करना, सदा सच बोलना, ईमानदारी, कर्मठता, उचित भोजन करना, स्वास्थ्य पर ध्यान देना इत्यादि को वह सीखता ही नहीं है बल्कि अपने जीवन में उसे आत्मसात करता है। सके मुकाबले अगर हम उसके मातृभाषा के अलावा अगर उस समय हम कोई दूसरी भाषा कविता सिखाएंगे तो वह उस भाषा के सार को उस समय नहीं समझ पाएगा और केवल उस भाषा के टेक्निकल शब्दों में ही उलझ जाएगा। इसीलिए तो कई शिक्षाविदों ने कहा है कि मातृभाषा (giving mother tongue education) में छोटे बच्चों को शिक्षा सबसे पहले देना चाहिए।


अपने आसपास के लोगों और अपने आसपास के वातावरण से जब बच्च परिचित होता है तो बच्चे के अंदर सहनशीलता और ईमानदारी का विकास भी होता है। ऐसे बालक अच्छे या बुरे का फर्क जल्द ही करना सीख जाते हैं। इन बालकों के माता-पिता अपने बच्चे के आदर्श को देखकर प्रफुल्लित होते हैं और निश्चित ही इन बच्चों का भविष्य उज्जवल होता है। इस तरह कविता के माध्यम से बच्चे स्वयं की आलोचना से भी बहुत कुछ सीखते हैं और  स्वयं को सुधारते भी हैं।

पर्यावरण जागरूकता के लिए कविता hindi poetry

बच्चा #children आगे चलकर इसी समाज का हिस्सा बनेगा और इसी पर्यावरण का एक भाग भी बनेगा। स्कूली शिक्षा के दौरान पर्यावरण के प्रति जागरूकता पेड़ लगाकर (वृक्षारोपण) जैसे एक्टिविटी के जरिए दिया जाता है। कविता के माध्यम से पेड़ पौधों के बचाने और उनके लगाने की ललक बच्चे में पैदा की जाती है क्योंकि पर्यावरण जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आधार है, पर्यावरण को दूषित करना सबसे बड़ा पाप माना जाता है।
Copy right Abhishek Kant pandey


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