Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
Adhyatm jeewan, अध्यात्म जीवनशैली से बदलाव
आध्यात्मिक प्रयोग से लाए व्यवहार में शालीनता
Abhishek kant pandey
यह एक जनरल थ्योरी है कि भले लोग गृहस्थी बसाते हैं और सज्जनता से चलाते हैं, सज्जनता और शालीनता में बारीक फर्क है। गृहस्थी चलाते हुए कई सज्जन लोग खाली नहीं रह पाते हैं। शालीनता एक आत्मिक अनुशासन है। जीवन में विलास और अहंकार जिस तेजी से प्रवेश करते हैं, उसके लिए शालीनता स्पीड ब्रेकर का काम करती है। घर के किसी मेंबर का एक दूसरे के प्रति और खासतौर पर लाइफ पार्टनर जब शालीनता का व्यवहार करेंगे तो अपने मन के भाव में बढ़ोतरी होगी। व्यवहार में शालीनता लाने के लिए आध्यात्मिक प्रयोग किए जा सकते हैं।
ध्यान और योग के शरण में जाएं
आध्यात्मिक सुख और मानसिक सुख दोनों एक दूसरे के साथ ही मिलता है। यानी कि यदि आध्यात्मिक सुख है तो मानसिक सुख भी है। अगर आध्यात्मिक सुख नहीं है तो मानसिक सुख भी नहीं है। मन अशांत ही होता है क्योंकि मन सदा चंचल ही होता है इसलिए अशांत मन को हटाने के लिए मन से दूर हट जाना चाहिए। इसके लिए तरीका है, आध्यात्मिक शांति की। भारतीय संस्कृति में योग और अध्यात्म का बहुत बड़ा महत्व है। मन में जब प्रखर चेतना जागृत होगी तब मन अशांति से शांति की ओर आएगा। मतलब साफ है कि आध्यात्मिक सुख ही मन का सुख होगा।
जैसा कि मैंने बताया कि मन को शांत करने के लिए ध्यान और आध्यात्म का प्रयोग करना चाहिए। दार्शनिक अरविंदो घोष मन की एकाग्रता पर बल दिया, इसी तरह स्वामी परमहंस ने भी मन की एकाग्रता को आध्यात्म के एकरूपता से पाने की बात कही है।
ध्यान के जरिए हम मन को एकाग्र कर सकते हैं। इसके लिए परिवार के सदस्य जब भी बैठे साथ में ध्यान का अभ्यास करें। सावधान रहें इस समय मौन घटाना है चुप्पी नहीं। एक साथ किया जा रहा मेडिटेशन आपस में प्रेम भरेगा।
क्यों होता है मन अशांत
हमेशा मनचाहा मिले ऐसा दुनिया में संभव भी नहीं है। इस सच्चाई को जितनी जल्दी जान ले उतना ही हम सत्यता के करीब होते हैं और इस सोच में पड़े रहते हैं कि हमारे साथ हमेशा गलत क्यों होता है तो अवश्य ही मन अशांत ही रहेगा।
ध्यान दें कि आप कुछ एक कमी (दुख चाहत को) ही अपने साथ गलत होने से जोड़ते हैं, जबकि सैकड़ों ऐसे बेहतरीन खुशियां आपकी जिंदगी में हैं, जो सकारात्मक है, उन्हें आप सोचना छोड़ देते हैं, इसलिए आप बेचैन भी रहते हैं। भारतीय संस्कृति में मन अशांत होने का कारण भ्रम भी बताया गया है।
तो ऊपर बात जो मैंने बताई है वह एक सच्चाई है लेकिन हम भ्रम में पड़े रहते हैं। गौर करें कि हम सकारात्मक सोच को अपनाने में थोड़ा पीछे रह जाते हैं और नकारात्मक सोच हमारे ऊपर हावी हो जाता है।
इस तरह हम किसी एक विशेष उपलब्धि को न पाने पर स्वयं को जिम्मेदार मानने लगते हैं, जबकि जो हमारे पक्ष में सकारात्मक चीजें हैं, उसके बारे में हम सोचते नहीं हैं। इसी भ्रम और संदेह की स्थिति में मन अशांत अवस्था की ओर चला जाता है।
सकारात्मक दृष्टि इसलिए सही है कि....
भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों में सकारात्मक दृष्टि अत्यधिक रही है इसलिए उनका मन बहुत शांत रहता था। उनके अंदर ईर्ष्या व क्रोध नाम की कोई भाव नहीं था। बात अभी मेरी खत्म नहीं हुई है, अभी हम इस निष्कर्ष में पहुंचेंगे कि आखिरकार हम अपने अंदर उठने वाले मन के विकारों को किस तरीके से मन से हटाए।
मन विकृतियों का पुलिंदा है
आपको यह बात अटपटी लग रही है लेकिन कई आधुनिक साइकोलॉजिस्ट ने भी माना है कि हमारा मन और विचार विकृतियों को उभरता है। यहां मैं जोड़ना चाहूंगा कि यदि मैं किसी व्यक्ति से अपेक्षित अपने प्रति अच्छा व्यवहार चाहता हूं तो मुझे भी उसके प्रति अच्छा व्यवहार रखना होगा। मैंने अभी तक इस पैराग्राफ में जो बातें कही है। उसे साबित करने की कोशिश कर रहा हूं तो ध्यान रखिए कि यदि कोई ऐसा व्यक्ति जो मुझे दुख देता है तो उसके प्रति मेरी नकारात्मक सोच हावी हो जाती है, और फिर मेरा मन दुख से भर जाता है।
सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह सोचने के दो पहलू
स्थिति यह है कि अगर उस व्यक्ति की बातों को गौर किया जाए तो हो सकता है कि उसकी बात सच हो लेकिन मेरे समझने के तरीके में उससे मुझे दुख प्राप्त हो रहा है, ऐसा मैं सोचता हूं। लेकिन सिक्के के दो पहलू होते हैं, अगर वह व्यक्ति सही बात कह रहा और मेरे में सुधार परिवर्तन की गुंजाइश है और इस सकारात्मक दृष्टि से मैं उस बात को देता हूं तो निश्चित तौर पर मुझे सीखने को मिलेगा और मेरा यह सकारात्मक सोच मेरे अंदर नया परिवर्तन लाएगा। अब हम यह निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सुख और दुख हमारे मन की ही उपज होता है।
लेकिन मन क्या शांत होने की तो यह बात अधूरी लग रही। इस बात को फिर से समझने की कोशिश करें कि हमारा मन न शांत रहता है, न अशांत रहता बल्कि यह चंचल है। वह जिस दृष्टि से सकारात्मक या नकारात्मक सोच को पैदा करता है, उसी के अनुसार वह शांत और अशांत रहता है, ऐसा हमें प्रतीत होता है।
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विचारे सकारात्मकता और नकारात्मकता की नई पहेली
पॉइंट यह है कि सकारात्मकता और नकारात्मकता ही दो पहलू ही पहेली है। चलिए इसे एक उदाहरण से समझा जाए। जो हमारे लिए सबसे प्यारा है, उस सदस्य से जब हम बातचीत करते हैं। उसके द्वारा किया गया अनुचित व्यवहार मुझे पीड़ा प्रदान कर सकता है लेकिन वह व्यक्ति मेरे लिए प्रिय है। इसलिए कि उसके इस अनुचित व्यवहार का मैं बुरा नहीं मानता हूं अर्थात मैं उसे सकारात्मक दृष्टि से लेते हुए उसमें सुधार परिवर्तन की गुंजाइश को प्रकट करता हूं।
तो मेरा मन दुखी नहीं होता है लेकिन इसके उलट सोचिए ऐसा व्यक्ति जिसे हम पसंद नहीं करते हैं, अगर ऐसा व्यक्ति का व्यवहार हमारे प्रति अनुचित होता है तो हम उस से दुखी हो जाते हैं और इस बात से लेकर हमारा मन अशांत भी हो जाता है, यानी कि हमने उसकी बातों को नकारात्मक दृष्टिकोण से लिया।
इसलिए नजरिया बदलने की आवश्यकता है।
इन्हें भी देखें
पहचानिए अपने विचारों की शक्ति
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