Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
प्रदूषण की समस्या पर निबंध | प्रदूषण का राक्षस | Pollution Problem nibhandh in hindi |
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सत्य, अहिंसा और सरल जीवन। इन्हें अपनाकर ही हम प्रकृति की रक्षा कर सकते हैं। आप बताइए कि आज सबसे बड़ी बुराई हमारे अंदर क्या है? जिस कारण से यह प्रकृति भी कांप उठती है। राम और रावण युद्ध के बीच में भी, इतना प्रदूषण नहीं हुआ होगा, जितना प्रदूषण हम धरतीवासी आज एक दिन में फैलाते हैं।
प्रदूषण वाला राक्षस
आज आधुनिक युग में हम ऐसे बड़े राक्षस से घिरे हुए हैं। जो हमारा सर्वनाश करने के लिए आगे बढ़ रहा है।और दिनोंदिन यहा शक्तिशाली होता चला जा रहा है। यह राक्षस आकाश से पाताल, पाताल से धरती, धरती से हिमालय, जैसे क्षेत्रों में अपना विकराल रूप दिखा रहा है। 'प्रदूषण' नाम है- इस राक्षस का। यह हमारी गलतियों का दुष्परिणाम है। इसके लिए मनुष्य जाति ही जिम्मेदार है। उसने अपनी सुख-सुविधा की खोज में अनजाने में और फिर जानबूझकर इस प्रदूषण रूपी राक्षस को शक्ति प्रदान की है। आज हम ऐसे मुहाने में खड़े हैं, जहां से हमारी पीढ़ी, हमारी ओर देख रही है कि पिछले 20 सालों से हमने आधुनिकता के नाम पर कार्बन उत्सर्जन से लेकर वृक्षों की धुआंधार कटाई की, इसके खिलाफ उठनेवाले आवाजों को हमने कुचल दिया। वर्तमान पीढ़ी जो अपने युवा अवस्था में प्रवेश करेगी तो प्रदूषण से कमजोर लाचार तरह-तरह के जीनेटिक्स बीमारियों के घेरे में, घरों और कारों में ऑक्सीजन कृत्रिम व्यवस्था किए हुए जीने का असफल प्रयास करता हुआ, नजर आएगा यह भयावह दृश्य क्या हम झेल पाएंगे?
हमने रावण को जलाया पर उसकी बुराई को नहीं
यह संकट उबर पाएगा कि नहीं, यह सवाल आज उठाना जरूरी है! हमने रावण को मारा, हमने उसकी बुराइयों को नहीं मारा, क्योंकि उसकी बुराइयां हमारे आसपास इस संसार में चारों तरफ हैं। वही अहिंसा, वही भौतिक सुख की कामना, वही असत्य, वही भ्रष्टाचार, वही नारी अस्मिता के साथ खिलवाड़, इन बुराइयों के चक्रव्यूह में हम फंस चुके हैं।
लेकिन आपके मन में उठ रहा यह प्रश्न जायज है कि प्रदूषण से इसका क्या संबंध है? जान लीजिए, जो बुराइयां रावण-दहन में देखने को मिल रही है, वह बुराइयां पहले रावण दहन के बाद से अब तक अब तक बदस्तूर जारी है। अहिंसा, असत्यता और भौतिक सुखों की कामना, लगातार हमें अपनी धरती के साथ अन्याय करते आ रहे हैं, इन सबकी प्राप्ति के लिए इंसान, बेईमानों की तरह प्रदूषण जैसे राक्षसों को अपनी करनी से पैैैदा करता आ रहा है।
पर्यावरण का भक्षक प्रदूषण रूपी राक्षस हर जगह है
आज यह राक्षस वायु, जल और धरती पर अपनी काली छाया बरसा रहा है। आपके कारों से निकलता धुआं और सीवर लाइन से नदियों में जाती हुई- गंदगी। हिमालय में पर्यटन के नाम पर इंसानों की वहां पर सुख सुविधा वाली गतिविधियां। छोटे-छोटे राक्षस प्रदूषण के रूप में तबाही मचा रही है, ये राक्षस जो बाढ़ और सूखे के रूप में एक साथ, एक समय में हर साल नजर आता है। यह तबाही हमारे फसलों को और हमारे पीढ़ियों को तबाह कर रही है।
दुनिया के कई देशों का अस्तित्व खतरे में है
दुनिया के देशों के बीच इस बात के लिए बहस होती है, 'तुम कार्बन उत्सर्जन कम करो, मैं क्यों करूं, मेरी मर्जी।' रिसर्च भी बताते हैं कि आने वाले समय में वे देश, जो समुद्र के किनारे छोटे से क्षेत्र में किसी टापू पर बसे हैं, वहां की संस्कृति-भाषा, वहां की प्रकृति, अब हमारे बीच में नहीं रहेगी, क्योंकि बड़े-बड़े देश कार्बन-उत्सर्जन में 'मास्टर' बनते जा रहे हैं। उनका कार्बन डाइऑक्साइड धरती को लगातार गर्म कर रहा, इस कारण से ग्लेशियर लगातार पिघल रहा है और पिछला हुआ जल समुद्र में मिल रहा हैं, इस तरह समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। इन छोटे-छोटे टापुओं पर बसे देशों का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।
इन देशों ने पूरी दुनिया से गुहार लगाई है कि बड़े देश कार्बन उत्सर्जन को कम करें और उन तरीकों को अपनाएं, जिससे कि कार्बन डाइऑक्साइड जैसी घातक वातावरण को गर्म करने वाली गैसे कम उत्पन्न हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सराहनीय प्रयास
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में इस बात की चिंता व्यक्त की और उन्होंने 'सिंगल यूज पॉलिथीन' का पूर्णतया प्रतिबंध लगाने के लिए भारत में कानूनी रोक लगा कर यह साबित कर दिया कि वे ऐसे देश के प्रधानमंत्री हैं, जिस देश में प्रकृति की पूजा होती है और उस प्रकृति को बचाने की जिम्मेदारी इस पूरे विश्व में हम भारतवासियों के कंधों पर है।
भारत के कंधे पर है, प्रदूषण से मुक्त विश्व का सपना
हमारा देश तरक्की के रास्तों पर आगे बढ़ रहा है। लेकिन उसके लिए 'कार्बन उत्सर्जन' कम करना एक तरह से उसके विकास में रोड़ा हो सकता है लेकिन हम भारत के नागरिक अगर अपने जीवन में प्रदूषण के राक्षस के खिलाफ लड़ने की जंग आज से शुरू कर दें तो निश्चित ही आने वाले समय में हम पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल रखेंगे। भारत को प्रदूषण मुक्त और इसकी हवा में स्वच्छता ताजगी भर देंगे, यह प्रण हम भारतवासी तभी पूरा कर सकते हैं, जब इस देश से के 125 करोड़ जनता नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करें। क्योंकि उनका यह सपना अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का भी सपना था कि हम स्वच्छता को अपनाकर प्रदूषण मुक्त हो सकते हैं।
विदेशों में रह रहे भारतवंशियों की भी जिम्मेदारी प्रदूषण से मुक्त हो हमारी धरती
आइए! अपनी परंपरा को पहचाने, हम भारतवंशियों से भी आग्रह करते हैं, वे चाहे अमेरिका में हो, वे चाहे आस्ट्रेलिया में हों, विश्व के किसी भी कोने में है, वह भारत की परंपरा भारत की संस्कृति और प्रकृति की रक्षा करने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए।
प्रदूषण के रूप में राक्षस हमारे चारों ओर हैं। अब वक्त आ गया है कि हम स्वयं को बदलें। नहीं तो प्रदूषण रूपी राक्षस हमारे अस्तित्व पर सवाल खड़ा करके हमें अस्तित्वविहीन (नष्ट कर देगा) बना देगा रहा है। हम जिस रावण को जलाते हैं वह हर बार हँसता है क्योंकि जलने के बाद वह कार्बन डाइऑक्साइड और खतरनाक राक्षस प्रकृति के हवाले कर देता है और जाने-अनजाने हम खुश हो जाते हैं लेकिन अपने अंदर की बुराइयों को समाप्त नहीं कर पाते हैं। जलता हुआ, हँसता हुआ रावण, अपने अंत के साथ ही, वह फिर प्रदूषण के राक्षस के रूप में हमारे इर्द-गिर्द, हमारी आदतों में, हमारी सोच में, हवाओं में और राख के रूप में धरती के कण-कण में समा जाता है।
आइए इस दशहरे पर अपने दायित्व को पहचाने
जब कोई कूड़ा जलाया जाता है, प्रदूषण का राक्षस पैदा होता है और हवा से हमारे सांसो और फेफड़ों से हमारे रक्त में बहकर, वो हमारे मन, मस्तिष्क व शरीर को बीमार बना देता है।
आइए प्रण लेते हैं, हम भारतवासी और भारतवंशी इस दुनिया को प्रदूषण के राक्षस से बचाएंगे। इस धरती की संस्कृति, मानव जाति की रक्षा के लिए हम अपने भौतिक सुखों और बुराइयों को समाप्त करेंग। आशा है कि हमारी यह सोच हमारे कर्म के रूप में आज से ही प्रदूषण के राक्षस को खत्म करने के लिए आगे बढ़ेंगे, आने वाले दशहरा तक हम प्रदूषण के राक्षस को धरती से समाप्त कर चुके होंगे।
(यह लेख ब्लॉगर अभिषेक कांत पांडेय द्वारा विद्यालय में पर्यावरण जागरूकता पर दिए गए भाषण का संपादित अंश है।)
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