Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्यो...
गांधी जी की 153वीं जयंती पर विशेष लेख: पर्यावरण के प्रति जागरूक थे| pradushan per gandhi ke thought| प्रदूषण पर गांधीजी के विचार | hindi nibandh
गांधी जी की 153वीं जयंती पर विशेष लेख: पर्यावरण के प्रति जागरूक थे| pradushan per gandhi ke thought| प्रदूषण पर गांधीजी के विचार | hindi nibandh
प्रदूषण आज एक बड़ी समस्या है। इस पर कई परीक्षा में हिन्दी में निबंध पूछे जाते है। गांधी जी के पर्यावरण समस्या प्रदूषण पर उनके क्या विचार थे, आज के समय के लिए महात्मा गांधी जी ने अपने समय आने वाले समय पार्यावरण प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की थी। पर्यावेरण समस्या पर अपने समय पर उठाए गए उनकी बातें आज सच हो रही है। प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए गांधी जी के विचारों को अपनाना भी जरूरी है। आज पर्यावारण प्रदूषण पर ये नये विचार वाला निबंध दिया जा रहा है। आशा है कि ये hidni nibandh आपके लिए उपयोगी है। कृपया हमें कमेंट करके जरूर बताएं। इस निबंध को जन जागरुकता के लिए सभी को शेयर करना न भलें।
thought of Gandhi jee on pollution in hindi nibhandh.
उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण स्वार्थ और नैतिक पतन पर गांधी जी ने अपनी पुस्तक द हिंद स्वराज में उन्होंने लगातार हो रही खोजों के कारण पैदा हो रहे उत्पादों और सेवाओं को मानवता के लिए खतरा बताया था। उन्होंने बेलगाम बढ़ रहे आधुनिकीकरण को खतरनाक बताया। गांधी जी का आधुनिकीकरण की सोच प्रकृति nature को साथ में लेकर चलने वाली थी।
2 अक्टूबर, 2022 है। गांधी जी के 153 वीं जयंती पर आज का दिन बहुत खास है। इसलिए भी कि महात्मा गांधी की सोच व उनका नजरिया आज भी हमारे लिए मायने रखता है। आज से सिंगल यूज होने वाले पालीथीन पर भारत सरकार रोक लगा रही है। गांधी जी का सपना था कि आजाद भारत के हर नागरिक को उसे जीने अधिकार मिले। चाहे वह अभिव्यक्ति की आजादी हो या उसे स्वच्छ वातावरण में जीने के अधिकार आज पूरी दुनिया में पर्यावरण बचाने के लिए लोग संकल्प ले रहे है। पर्यावरण विश्व शिखर सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन के कारण बढ़ता धरती का तापमान एक बड़ी समस्या है। इन सभी मुद्दों में एक है, प्लास्टिक के कारण यह धरती प्लास्टिक के कचरे में बदल रहा है। आज अगर गांधी जी जिंदा होते तो खराब हो रहे पर्यावरण के खातिर वे अपनी आवाज जरूर बुलंद करते आइए जाने कि महात्मा गांधी जी पर्यावरण को बचाने की उनकी पहल आज हमारे युवा पीढ़ी के लिए मिसाल है।
प्लास्टिक पर बैन
2 अक्टूबर को सरकार प्लास्टिक से बने प्रोडक्टस के इस्तेमाल पर पाबंदी से जुड़ा अभियान शुरू किया। देशभर में प्लास्टिक से बने बैग, कप और स्ट्रॉ पर सरकार पाबंदी (Plastic Ban) लगाया गया है।
2 अक्टूबर को मोदी सरकार प्लास्टिक से बने 6 प्रोडक्टस के इस्तेमाल पर पाबंदी से जुड़ा अभियान का शुरुआत किया।
भारत में बढ़ते पॉल्यूशन को खत्म करने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना बहुत जरूरी है। सरकार के इस कदम से आम लोगों के लिए कई नए बिज़नेस शुरू करने के मौके भी मिलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की है और इस प्रदूषण के खिलाफ उन्होंने अभियान छेड़ दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सराहनीय प्रयास
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में इस बात की चिंता व्यक्त की और उन्होंने 'सिंगल यूज पॉलिथीन' का पूर्णतया प्रतिबंध लगाने के लिए भारत में कानूनी रोक लगा कर यह साबित कर दिया कि वे ऐसे देश के प्रधानमंत्री हैं, जिस देश में प्रकृति की पूजा होती है और उस प्रकृति को बचाने की जिम्मेदारी इस पूरे विश्व में हम भारतवासियों के कंधों पर है।
वायु प्रदूषण पर गांधी की चिंता
आज विश्व बिरादरी के बीच इसी बात को लेकर बहस है कि कार्बन उत्सर्जन कम कौन करें? आज आधुनिक बनने के चक्कर में बिना सोचे समझें विकास की रफ्तार ने कार्बन उत्सर्जन को बढ़ा दिया है, जबकि गांधी जी ने कहा है कि प्रकृति के साथ ही सही विकास है। वायु प्रदूषण आज एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
गांधी जी का पहला सत्याग्रह 1913 में साउथ अफ्रिका में किया था। गांधी जी की दूरदृष्टि ही थी कि उन्होंने आंदोलन की अगुवाई के समय स्वच्छ हवा लोगों के जीवन का आधार है। उन्होंने उस समय एक लेख में Key To टू Health (स्वास्थ्य ही कुंजी है) एक पूरा चैप्टर लिखा और इसमें हवा, पानी और भोजन की आवश्यकता के ऊपर, हवा की हमारी जरूरत पर विशेष बल दिया।
उन्होंने इस बात पर दुख प्रकट किया कि आने वाले वक्त में शुद्ध हवा प्राप्त करने के लिए कीमत अदा करनी पड़ेगी। उनके कहने का मतलब था, साफ हवा के लिए लोगों को दूर जाना पड़ता है, जैसे बाग व पार्क आदि जगहों में स्वच्छ वायु प्राप्त होती है। लेकिन आधुनिक सभ्यता ने जगह-जगह प्रदूषण साफ हवा के लिए इंसान को कीमत अदा करनी पड़ रही है जोकि आज हमारे सामने दिखाई दे रहा है।
आज से करीब 100 साल पहले अहमदाबाद में एक बैठक को संबोधित कर रहे थे, गांधी जी तो उन्होंने वायु, जल और अनाज-इन 3 चीजों को हर इंसान के लिए जरूरी बताया और यह आसानी से लोगों को उपलब्ध हो इसलिए उन्होंने इसकी आजादी के संबंध में अपनी बात रखी।
हर इंसान को जल वायु और अनाज का अधिकार मिले इसके लिए उन्होंने चिंता व्यक्त की। यह बातें आज भी अदालतों ने इंसान की मूलभूत आवश्यकता बताया।
सभी के लिए फूड सिक्योरिटी बिल और स्वच्छ वायु जल मिले इसके लिए कानूनी प्रावधान पर बहस आज के समय पर होना लाजमी है। गांधी जी ने अपने विचारों में रखा था, रेंज विचारों से दुनिया प्रभावित है।
आज से करीब 100 साल पहले अहमदाबाद में एक बैठक को संबोधित कर रहे थे, गांधी जी तो उन्होंने वायु, जल और अनाज-इन 3 चीजों को हर इंसान के लिए जरूरी बताया और यह आसानी से लोगों को उपलब्ध हो इसलिए उन्होंने इसकी आजादी के संबंध में अपनी बात रखी।
हर इंसान को जल वायु और अनाज का अधिकार मिले इसके लिए उन्होंने चिंता व्यक्त की। यह बातें आज भी अदालतों ने इंसान की मूलभूत आवश्यकता बताया।
सभी के लिए फूड सिक्योरिटी बिल और स्वच्छ वायु जल मिले इसके लिए कानूनी प्रावधान पर बहस आज के समय पर होना लाजमी है। गांधी जी ने अपने विचारों में रखा था, रेंज विचारों से दुनिया प्रभावित है।
गांधी जी हमेशा कहते थे कि आजादी का मतलब यह नहीं केवल अंग्रेजों से आजादी मिले। उन्होंने इस बात को स्पष्ट किया कि आजादी मूलभूत आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ है और इस पर उन्होंने गंभीरता से विचार किया। आधुनिक सभ्यता विकास के दोहन में इतनी तेजी से आगे बढ़ गई कि उसने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया है। इस बात की चिंता गांधी जी को अपने समय में पहले से थी।
गांधीजी 100 साल पहले आज के समय में वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान के प्रति उसी समय बहुत गंभीर थे और इस बात को उनके लेखों और भाषणों में समझा जा सकता है इस तरह देखा जाए तो 21वीं सदी में भी उन्हें हम अपने आसपास उनके विचारों के साथ स्वयं को खड़ा पाते हैं।
वायु प्रदूषण के प्रति उनकी समय को लगने वाली जो सोच थी और इस कारण से जो होने वाली भयावह स्थिति थी उससे निपटने के लिए गांधीजी ने अपने विचारों में अंधाधुन आधुनिकता के विरोध में लोगों को बताया।
पढ़ने के लिए क्लिक करें मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी
पढ़ने के लिए क्लिक करें। 10 बातें एक टीचर को जानना जरूरी है।
धरती प्रकृति के नियमों में बनी हुई है। यहां जो भी विकास है वह हड़बड़ी वाले विकास के कारण प्रकृति को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई हम हजारों साल तक नहीं कर सकते हैं इस सोच को उन्होंने अपने कई बयानों में कहा है। उनके बयान का जिक्र यहां होना जरूरी है कि यूरोपीय संघ के संदर्भ में दिए गए उनका बयान आज भी पूरे मानव समाज के लिए उपयोगी है। यह बात 1931 में उन्होंने लिखा था कि भौतिक सुख और आराम के साधनों के चक्कर में हम निरंतर बुराई को जन्म दे रहे हैं। उन्होंने बड़े साफगोई से यह बात यूरोपी लोगों को उनके दृष्टिकोण में बदलाव लाने के लिए कहा कि भौतिक सुखों की प्राप्ति और आराम तलबी के कारण वे अपना नुकसान कर रहे हैं। वर्तमान में देखा जाए तो यूरोप के लोग जिस तरीके से पर्यावरण के नुकसान के चलते परेशान है आज गांधी जी की बातों को वे अपना रहे सादा जीवन जीने की उनकी पहल को भौतिक संसाधन से स्वयं की निर्भरता को भी वे अब कम कर रहे हैं।
एक बात का उल्लेख उन्होंने किया था कि ब्रिटेन के एक आदमी जितना भौतिक संसाधन का प्रयोग करता है अगर उतना धरती का प्रत्येक आदमी उन भौतिक संसाधनों का उपयोग करने लगेगा तो हमें इस तरह के तीन पृथ्वी की जरूरत होगी। गांधीजी ने लगभग 80 साल पहले ही लिख दिया था अगर भारत पश्चिमी देशों की नकल करके विकास करेगा तो उसे इस विकास को हासिल करने के लिए एक नई धरती की जरूरत होगी।
आज हमें गांधीजी के मौलिक सोच को सामने लाना है जो भौतिक संसाधनों को बेवजह उपयोग करने की मना ही करता है। गांधीजी का मानना था कि हमें विकास को करना चाहिए लेकिन यह विकास शतक और टिकाऊ होना चाहिए और इसके लिए हमें गांधीजी के शरण में जाना होगा और उनके पर्यावरण संबंधित विचारों को पूरी दुनिया में लागू करना होगा।
गांधी जी ने कहा था कि दूर-दराज में जो खाद पदार्थ उपभोक्ता तक पहुंचाए जाते हैं, उनका भी सेवन वे नहीं करेंगे। उनका यह स्पष्ट मानना था कि पैकेजिंग व परिवहन के कारण इन खाद्य सामग्रियों को पहुंचाने में काफी ऊर्जा खर्च होती है। जिस कारण धरती पर प्रदूषण बढ़ता है। इस तरह से कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण को वह समझते थे। इसीलिए उन्होंने इस बात पर बल दिया कि कुछ किलोमीटर के दायरे में ही उन पदार्थों का निर्माण हो और वही खपत किया जाए । उनके कहने का मतलब साफ था कि पैकेजिंग परिवहन और संरक्षण में किसी भी प्रोडक्ट को दूरदराज के इलाके तक पहुंचाने में कई तरह की ऊर्जा की खपत होती है जो कि हमारे धरती के लिए नुकसानदायक है इसलिए पदार्थों का निर्माण और उपभोग उसी कुछ किलोमीटर के दायरे में ही हो तो इस तरह ऊर्जा खपत को बचा सकते जिस कारण से वायु प्रदूषण होता है। जलवायु के अर्थशास्त्र पर यूके में निकोलस ईस्टर्न कमेटी रिपोर्ट में ग्रीनहाउस गैस के कम उपयोग के साथ-साथ जीवन शैली में बदलाव करके कार्बन अर्थव्यवस्था से एक गैर कार्बन अर्थव्यवस्था में ट्रांसफर होने पर जोर देती है।
गांधी जी ने भी कई अवसर पर यह लिखा है कि मनुष्य अपनी भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 15 या 20 किलोमीटर से ज्यादा दूर के संसाधनों का प्रयोग करेंगे तो प्रकृति की जो अर्थव्यवस्था है, वह नष्ट हो जाएगी। गांधीजी का स्वदेशी चिंतन वास्तव में प्रकृति की अर्थव्यवस्था का चिंतन था जो हमें पर्यावरण संरक्षण की गहरी सोच और संवेदनशील बनाता है। सन 1928 में उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि विकास और औद्योगिक में वेस्टर्न कंट्री का पीछा करना मानवता और पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर देगी।
उन्होंने यह भी कहा कि भगवान न करें कि भारत सभी पश्चिमी देशों की तरह औद्योगीकरण अपनाना पड़े। कुछ किलोमीटर के एक छोटे से देश इंग्लैंड आर्थिक साम्राज्यवाद ने आज दुनिया को उलझाकर रखा है। अगर सभी देश इसी तरह के आर्थिक शोषण करने लगेंगे तो दुनिया टिड्डी के दल की तरह हो जाएगी। इससे स्पष्ट है कि गांधीजी पश्चिमी आधुनिकीकरण के खिलाफ थे।
उन्होंने पश्चिमी तरीके से विकास के पैमाने को गलत और प्रकृति का विरोधी ही बताया तो इस तरह हम देखते हैं कि गांधीजी की जो दृष्टि थी वह भौतिक जीवन में अत्यधिक सुख पाने की कामना प्रगति के लिए नुकसानदायक बताते थे और यह सही भी है कि अगर हम लगातार ऊर्जा का इस्तेमाल करते रहेंगे तो एक न एक दिन हमें प्रकृति के भयानक रूप को देखना पड़ेगा।
गांधीजी का स्वदेशी सोच पर्यावरण संरक्षण के लिए संरक्षक है
गांधी जी ने भी कई अवसर पर यह लिखा है कि मनुष्य अपनी भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 15 या 20 किलोमीटर से ज्यादा दूर के संसाधनों का प्रयोग करेंगे तो प्रकृति की जो अर्थव्यवस्था है, वह नष्ट हो जाएगी। गांधीजी का स्वदेशी चिंतन वास्तव में प्रकृति की अर्थव्यवस्था का चिंतन था जो हमें पर्यावरण संरक्षण की गहरी सोच और संवेदनशील बनाता है। सन 1928 में उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि विकास और औद्योगिक में वेस्टर्न कंट्री का पीछा करना मानवता और पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर देगी।
उन्होंने यह भी कहा कि भगवान न करें कि भारत सभी पश्चिमी देशों की तरह औद्योगीकरण अपनाना पड़े। कुछ किलोमीटर के एक छोटे से देश इंग्लैंड आर्थिक साम्राज्यवाद ने आज दुनिया को उलझाकर रखा है। अगर सभी देश इसी तरह के आर्थिक शोषण करने लगेंगे तो दुनिया टिड्डी के दल की तरह हो जाएगी। इससे स्पष्ट है कि गांधीजी पश्चिमी आधुनिकीकरण के खिलाफ थे।
उन्होंने पश्चिमी तरीके से विकास के पैमाने को गलत और प्रकृति का विरोधी ही बताया तो इस तरह हम देखते हैं कि गांधीजी की जो दृष्टि थी वह भौतिक जीवन में अत्यधिक सुख पाने की कामना प्रगति के लिए नुकसानदायक बताते थे और यह सही भी है कि अगर हम लगातार ऊर्जा का इस्तेमाल करते रहेंगे तो एक न एक दिन हमें प्रकृति के भयानक रूप को देखना पड़ेगा।
वर्तमान में यह स्थिति है कि कार्बन उत्सर्जन को लेकर कोई भी देश गंभीर नहीं है। सभी को विकास की चिंता सताए हुए हैं। जबकि स्थिति यह है कि धरती का ग्लोबल वार्मिंग के चलते समुद्र समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंजिंग के कारण खाद्य पदार्थों की भी कमी हो रही है यह स्थिति आज के समय में और आने वाले समय में और भयानक होती जाएगी इसलिए गांधीजी की विचारधारा को दुनिया अपनाने की ओर आज आगे बढ़ रहा है इस ओर कदम उठाने के लिए 2 अक्टूबर 2019 को गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सिंगल यूज पॉलीथिन के प्रयोग पर बैन लगाने का कदम धरती को बचाने की ओर पहला लोकतांत्रिक कदम है। दुनिया के दूसरे देशों नेवी धरती को प्रदूषण से बचाने की कवायद शुरू की है जो किया सिलसिला अब धरती वासियों की जागरूकता से ही पूरा हो सकता है और सरकार को इसके लिए नए कानून बनाने होंगे।
गांधी जी ने रचनात्मक अहिंसक आंदोलन चलाकर दुनिया के देशों को अहिंसा के मार्ग पर चलने की सीख दी है क्योंकि युद्ध से मानव जाति का नुकसान ही होता है। गांधीजी ने सांप्रदायिक सद्भाव के साथ कई बातों का जिक्र किया जैसे आर्थिक समानता अस्पृश्यता का उन्मूलन लोगों के जीवन में प्रगतिशील सुधार महिलाओं को मताधिकार निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार। इन सब मुद्दों को टिकाऊ विकास के अंतर्गत रियो शिखर सम्मेलन के एजेंडा 21 में उठाया गया था। गांधी कल भी प्रासंगिक थे और आज भी प्रासंगिक है।
सुख सुविधा जुटाने की अंधी दौड़ प्रदूषण का कारण है
नमक आंदोलन के दौरान कुछ लोग कार से संतरे लाए थे तो उन्होंने कहा था कि नियम या होना चाहिए कि अगर आप चल सकते हो तो कार से चलना बचो। कई यूरोपीय देश है जहां कुछ ऐसे खास जगह है जहां पर कारों के आने पर टैक्स लगाया जाता ताकि वहां प्रदूषण कम किया जाए। यूरोप में कई ऐसे देश हैं जहां कार्ड 3 दिन बनाए जाते हैं और अपने भारत में इवेन व आड के जरिए सड़कों पर कारों की संख्या कम करने की कवायद भी हो चुकी है। अधिक कार रखने की उनकी चेतावनी को आज दुनिया महसूस कर रही है और इस पर कई रिसर्च हुए हैं, जिसमें सार्वजनिक यातायात के साधनों को अपनाने के लिए कहा गया है।
जल और वन संरक्षण के लिए गांधी के विचारों की प्रासंगिकता पर लौटना होगा
आज कहीं अकाल की स्थिति तो कहीं बाढ़ की स्थिति से लोग बेहाल हैं और मेरा ऐसे में गांधीजी के जल संरक्षण और वनों को संरक्षित करने कि उनके विचारों को समझना बहुत जरूरी है। आजादी के आंदोलन के समय गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में पढ़ने वाले आकाल के प्रति वह बहुत ही चिंतित थे। उन्होंने इस मुद्दे पर रियासतों से उस समय बात की और दीर्घकालिक उपायों को करने के लिए जैसे खाली पड़ी भूमि पर पेड़ लगाने का अभियान करना चाहिए उन्होंने बड़े पैमाने पर वनों की कटाई का विरोध किया था। 21वीं सदी में गांधी जी की यह बातें हमें याद रखनी चाहिए कि उस समय अंग्रेजों ने वनों की कटाई धन कमाने का एकमात्र जरिया समझा था लेकिन आज भारत में वनों की जो बेतहाशा कटाई हो रही है उसके रोक के लिए हम सभी को आगे आना होगा और वही तरीका अपनाना होगा जो गांधी जी ने उस समय अपनाया था लोगों में जन जागरूकता और अनशन।
1947 में जल संचयन पर जोर देते हुए उन्होंने दिल्ली में प्रार्थना सभा में बारिश के जल के उपयोग की वकालत की थी और इससे फसलों की सिंचाई करने की बात कही थी। भारत में सन 2006 में स्वामीनाथन आयोग ने भी सिंचाई की समस्या को दूर करने के लिए बारिश के पानी का प्रयोग करने की सिफारिश की थी।
दुनिया भी मानती है गांधी के विचारों को
ग्रीन पार्टी के फाउंडर में से एक पेट्रा अकेली ने पार्टी की स्थापना में महात्मा गांधी के विचारों के प्रभाव को स्वीकार करते हुए लिखा कि हमारे काम करने के तरीके महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित हुए हैं और विराम उन्होंने माना माना कि कच्चे माल के उपभोग से ही इकोसिस्टम सही तरीके से विकसित होता है और साथ ही अर्थव्यवस्था व्यवस्था में हिंसक नीतियां भी कम होगी।
गांधीजी की अहिंसा और सरल जीवन शैली से ही बच सकती है धरती
इस सदी में धरती को बचाने के लिए एक पुस्तक सर वीविंग द सेंचुरी फेसिंग क्लाउड कैकस। इस पुस्तक का संपादन प्रोफेसर हरबर्ट गिरा डेड द्वारा किया गया। इसमें चार सिद्धांतों का जिक्र हुआ जिसमें अहिंसा स्थायित्व सम्मान और न्याय यह चार सिद्धांत ही धरती को बचाने के लिए जरूरी बताया गया है। धीरे-धीरे ही सही दुनिया के तमाम देश गांधी जी के विचारों को अपना रही है।
द टाइम मैगजीन ने अपने 9 अप्रैल 2007 के अंक में दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के 21 उपाय बताए थे। उनमें से एक नवा उपाय था, कम उपभोग ज्यादा सामझदारी और सरल जीवन है तो दूसरे शब्दों में कहें कि यह उपाय गांधी जी के विचारों से प्रेरित है।
इस तरह देखें तो गांधीजी मौलिक सोच के व्यक्ति थे जिन्होंने अपने सरल जीवन और अहिंसा वाले विचार को पर्यावरण संरक्षण के लिए भी कारगर माना उनकी मौलिक सोच आज के दौर में प्रासंगिक है बस जरूरत है कि गांधीजी के विचारों को समझना और उसको अपनाना ताकि हमारी धरती और उसका पर्यावरण संतुलित रहे जिससे कि आने वाली पीढ़ियां हमें धन्यवाद देंगे।
क्या है सैक्रेड इकोनॉमिक्स यानी पवित्र अर्थव्यवस्था
क्या है पवित्र अर्थव्यवस्था। क्या आप पवित्र अर्थव्यवस्था पर विश्वास रखते हैं क्या आपने कभी सोचा है कि सेक्रेट इकोनॉमिक्स दुनिया को बदल सकती है। उपभोग की प्रवृत्ति ने और कछुआ खरगोश की दौड़ वाली सोच हम लेकर लगातार इस इकोनॉमिक्स में एक दूसरे की टांग खींच रहें। इसके बावजूद दुनिया में आधी से ज्यादा आबादी के पास न खाने का भोजन है और ना ही पहनने के कपड़े और ना जीने की आजादी। कुछ लोगों के पीछे भागने वाला यह दुनिया का अर्थशास्त्र हमारा दुश्मन हो गया है। आइए चलते हैं सेक्रेट इकोनॉमिक्स की शरण में
गांधी जी ने भी अपने विचारधारा में एक ऐसी अर्थव्यवस्था की बात कही थी, जहां पर सभी का विकास हो सके यानी कि यहां पर एक दूसरे की टांग खींचने वाली प्रवृत्ति नहीं होगी, इस अर्थव्यवस्था में।
लगभग इसी कॉन्सेप्ट को पवित्र अर्थव्यवस्था के नाम से जाना जाता है। चार्ल्स आइंस्टीन ने गांधीजी के उस विचारधारा को एक नए नजरिए से पेश किया है। वे बताते हैं कि मुद्रा की जो अर्थव्यवस्था है वह एक म्यूजिकल कुर्सी की दौड़ की तरह है। मान लीजिए कि 55 कुर्सियां है लेकिन दौड़ लगाने वाले 60 लोग हैं यानी कि इनमें से 5 लोगों को कुर्सी में बैठने का मौका नहीं मिलेगा और वे इस प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाएंगे। यानी यहां पर 60 लोगों के बीच अर्थव्यवस्था का छीना झपटी का जंग जारी होगा। और इस सीधा झपटी में केवल 55 लोगों के हाथ में ही मौके आएंगे। इस तरह इस म्यूजिकल चेयर गेम में बिल्कुल अर्थव्यवस्था की तरह वाली स्थिति होती है कि इंसान के काम छिल जाने का भय बना रहता है जिस कारण से वह व्यक्ति संघर्ष करता रहता है और मानव जाति का एक अवसाद की ओर बढ़ता चला जाता है।चिंता, तनाव व असंतुष्टि का भाव आज के मॉडर्न अर्थव्यवस्था की देन है।
की पवित्र इकोनॉमिक्स में गिफ्ट इकोनामिक्स की बात कही गई है। जहां पर हर व्यक्ति को कहीं ना कहीं संतुष्टि मिलती है। वह व्यक्ति समाज से जुड़ा रहता है। पवित्र इकनॉमिक्स यह मानती है कि इस सृष्टि में कोई भी व्यक्ति आया है, उसके लिए कुछ ना कुछ करने के लिए है। इसके लिए मुद्रा (money) आधारित संघर्ष न हो बल्कि मुद्रा अर्थशास्त्र विज्ञान के साथ मिलकर एक पवित्र उद्योग की स्थापना करता है यह कह सकते हैं कि पवित्र इकोनॉमिक्स सबको लेकर चलने वाला अर्थशास्त्र है।
पवित्र अर्थव्यवस्था पैसे को लेकर संघर्ष की स्थिति पैदा नहीं करती है। आज की इकोनामिक्स यानी मॉडर्न इक्नामिक्स उद्योग जगत में बेरोजगारी और लूट की सबसे बड़ी स्थिति पैदा करती है। अमीर और गरीबों के बीच की खाई लगातार बढ़ती गई। गांधीजी का भी यही मानना था कि हमें ऐसी सर्वोदय यानी सबके उदय वाली अर्थव्यवस्था का विकास करें जो हमारे गांव और कुछ किलोमीटर के दायरे में कच्चे माल से तैयार उपयोग वस्तुओं को वहां के लोगों द्वारा प्रयोग किया जाए। ताकि स्थानीय लोगों को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध हो सकें। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि लगभग पवित्र इकोनॉमिक्स गांधी के विचारधारा को भी लेकर चलती है। पवित्र इकोनॉमिक्स की राह में भारत पथ प्रदर्शक बन सकता है। यानी कि संसाधनों का प्रयोग आपस में बैठकर सभी मनुष्यों के लिए प्रयोग में होना चाहिए भारत की संस्कृति में सामंजस्य की सबसे बड़ी सीख है जो सारी दुनिया जानती है। उधर विदेशों की मल्टीनेशनल कंपनियों ने जिस तरीके से 90 के दशक में प्रतियोगिता को बढ़ाया जिस कारण से खुद अमेरिका जैसे देश आर्थिक मंदी को झेल चुके हैं।
पवित्र इकोनॉमिक्स एक तरफ से गिफ्ट इकोनॉमिक्स है, जहां पर सभी लोगों में समान रूप से संसाधनों को बांट कर उन्हें रोजगार दिया जा सकता है इस तरह से देखा जाए तो चारों तरफ खुशहाली आती है। और जो आपसी संघर्ष और प्रतिस्पर्धा में दूसरे की टांग खींचने की प्रवृत्ति है उस कारण से होने वाले अमानवीय घटनाओं पर भी रोक लगेगी इसलिए पवित्र अर्थव्यवस्था की मांग भारत में भी उठने लगी है। दुनिया के कई छोटे देश पवित्र इकोनॉमिक्स को अपना रही हैं।
सेक्रेट इकोनॉमिक्स यानी पवित्र अर्थव्यवस्था के विचारक चार्ल्स आइंस्टाइन।
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