Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
Akele rahne wale bacche Kyon Bigad Jaate Hain
Akele Rahane wale bacche Aakhir Kyon Bigad Jaate Hain जो बच्चे इकलौते या अकेले होते हैं, ऐसा माना जाता है कि उनके अंदर सामाजिक गुण उतना विकसित नहीं हो पाता। लेकिन ऐसा क्या सभी बच्चों के साथ होता है जो अकेले माता-पिता के साथ पल रहे हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि आज का समय कोई किसी को समय नहीं दे पाता है। सभी अपने निजी जीवन में ही व्यस्त रहते हैं फिर भी जिनके माता-पिता कामकाजी हैं तो उनके बच्चे का लालन-पालन किस तरह से हो पाता है क्या उनके पेरेंट्स उनको पर्याप्त समय दे पाते हैं या वह फैमिली जहां पर माता पिता के साथ उनके चाचा चाची दादा-दादी आदि रहते हैं ऐसी जॉइंट फैमिली में बच्चे ज्यादा सामाजिक होते इन बातों की जानकारी आइए जाने रिसर्च के माध्यम से-
बचपन के दिन बड़े सुहावने और मौज मस्ती वाले होते हैं। अकेले रहने वाले बच्चों पर नेगेटिविटी थिंकिंग का प्रभाव पड़ता है, जिनसे उनके सोचने के तरीके में नकारात्मकता आ जाती है। लेकिन इसके विपरीत, जो बच्चा अपने भाई या बहन के साथ बड़ा होता है, वे बच्चे नकारात्मक एक्टिविटी से दूर रहते हैं। उनमें अकेलापन डर और शर्मिला कम ही देखा जाता है। उनके भाषा का विकास बहुत तेजी से होता है क्योंकि उनके साथ उनके भाई या बहन अपने सुख-दुख और भावनाओं को बखूबी बाँटते हैं।
इसकी तुलना में अकेले रहने वाला बच्चा, जिसके भाई या बहन नहीं है। वह नकारात्मकता की ओर जा सकता है। ऐसी स्थिति में अकेलापन डर और शर्मिलापन होने की संभावना होती है। जो कि डिप्रेशन की ओर ले जा सकता है। यही डिप्रेशन किसी विशेष चीज से नफरत करना सिखा सकती है। कुछ मामलों में इंसान खुद को नुकसान भी पहुँचा सकता है।
लेकिन ऐसे बच्चे जो घर में भाई या बहन के साथ रहते हैं, कहने का मतलब यह है कि वे बच्चे जो अपने उम्र के साथ भाई या बहन के साथ बढ़ते हैं, उनमें चीजों के प्रति सकारात्मकता होती है।
अकेले रहने वाले बच्चों की तुलना में भाई बहन के साथ बड़े होने वाले बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में सफल होते हैं।
जिन लोगों के भाई या बहन होते हैं, वे आसानी से अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं। अपनी छोटी-मोटी समस्याओं को स्वयं ही सुलझा पाते हैं। भाई बहनों के बीच में प्रेम की भावना उनके व्यवहारों में सकारात्मकता लाती है। जो उनके भावी जीवन में सफलता का आधार बनता है। भाई-बहन के बीच में बहस झगड़ा होना रूठना और मनाना यह सब चलता रहता है।
रिसर्च हुआ खुलासा
ब्रिघम यंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने 395 फैमिली पर एक रिसर्च किया। इस रिसर्च की मुख्य बात यह थी कि जिनके एक से ज्यादा बच्चे थे, उनमें से एक बच्चा 10 साल या इससे कम उम्र का था।
आंकड़े इकट्ठा करते समय प्रोफेसर ने इस बात पर ध्यान दिया की छोटी या बड़ी बहन होने से उन बच्चों में बुरी आदतों या बुरे व्यवहार नहीं पाए गएँ।
इस रिसर्च में इस बिंदु पर गौर किया गया कि जब ऐसे भाई-बहन वाले बच्चों के बीच में आपस में बहस होती है, तो छोटी-मोटे नोकझोंक होने के बाद अपने भावनाओं को वे नियंत्रित करने का हुनर सीखते हैं।
रिसर्च से साबित हो गया कि अकेले बचपन गुजार रहे बच्चे बुरे व्यवहार और नकारात्मक सोच के शिकार हो सकते हैं, लेकिन अपने भाई-बहनों के बीच में रह रहे बच्चे अपनी भावनाओं को अपनी बातों को अच्छी तरीके से व्यक्त कर सकते हैं। उनके अंदर भाषाई विकास और सामाजिकता का विकास बहुत तेजी से होता है।
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