Me, mai, inme, uname, Bindu ya chandrabindu kyon nahin lagta hai | मे उनमे इनमे मै मे बिन्दु (अनुस्वार)) या चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) क्यों नहीं लगता है। मे, मै मे चन्द्रबिंदु या बिंदु लगेगा? Hindi mein chandrabindu kab lagana chahie kab nahin? Hindi spelling mistake किसी भी शब्द के पंचमाक्षर पर कोई भी बिन्दी अथवा चन्द्रबिन्दी (Hindi Chandra bindi kya hai) नहीं लगती है। इसका कारण क्या है आइए विस्तार से हम आपको बताएं। क्योंकि ये दोनो अनुनासिक और अनुस्वार उनमे निहित हैं। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इसके विज्ञान शास्त्र को देखा जाए तो जो पंचमाक्षर होता है उसमें किसी भी तरह का चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगता है क्योंकि उसमें पहले से ही उसकी ध्वनि होती है। पांचवा अक्षर वाले शब्द पर चंद्रबिंदु और बिंदु नहीं लगाया जाता है। जैसे उनमे, इनमे, मै, मे कुछ शब्द है जिनमें चंद्र बिंदु बिंदु के रूप में लगाया जाता है लेकिन म पंचमाक्षर है। Hindi main panchma Akshar kise kahate Hain? प फ ब भ म 'म' पंचमाक्षर pancman Akshar है यानी पांचवा अक्षर है। यहां अनुनासिक और अनुस्वार नहीं लगेगा। क्योंकि पं
इस बार का शारदीय नवरात्रि का महत्व विशेष है। शारदीय नवरात्रि रविवार 29 सितंबर से शुरू होकर यह 8 अक्टूबर तक चलेगी। नवरात्रि के दिन शक्ति प्राप्त करने का दिन होता है। इस बार 9 दिन नव अद्भुत और मंगलकारी शक्तियों का सहयोग मिल मिल रहे हैं।
ये है सिद्धियां-
2 दिन अमृत सिद्धि 2 दिन सर्वार्थसिद्धि 2 दिन रवि योग की सिद्धि प्राप्त होगी।दो सोमवार भी होंगे जो शिव और शक्ति के प्रतीक हैं
अश्वनी नव रात को देवी ने अपनी वार्षिक पूजा कहा है कि यह पूजा मुझे बहुत प्रिय है। मैं अपना वचन पूरा करने के लिए इस संसार लोक में आती हूं।
इस बार मां देवी दुर्गा का आगमन हाथी के सवारी से हो रहा है। यानी कि माँ दुर्गा हाथी पर विराजमान होकर पधार रही हैं।
पहले दिन शैलपुत्री की आराधना से नवरात्र का प्रारंभ होगा। इस बार देवी भगवती हाथी पर सवार होकर आ रही है लेकिन घोड़े पर सवार होकर उनकी विदाई होगी। वर्षा और प्रकृति का प्रतीक भी है- घोड़े पर सवारी ।इसके साथ ही हाथी पर आगमन शुभ माना जाता है। धन और धान की कोई कमी नहीं रहती है।
इस बार होगा 9 दिनों का पूरा नवरात्र -
बहुत प्रतीक्षा के बाद इस बार का शारदीय नवरात्र में व्रत के पूरे 9 दिन होंगे जो कि बहुत शुभ माना जाता है 29 सितंबर 2019 से शुरू होकर यह 8 अक्टूबर 2019 तक चलेंगे।
8 अक्टूबर को विजयदशमी यानी दशहरे का त्यौहार है इस दिन देवी की मूर्तियों का विसर्जन होता है। इस बार किसी तिथि हानी नहीं हो रही है इसलिए सभी नवरात्र व्रत होंगे।
पहला दिन शिव शक्ति
दूसरा दिन ब्रह्म शक्ति
तीसरा दिन रूद्र शक्ति
चौथा साध्य शक्ति
पांचवा दिन शिव शक्ति
सातवां दिन काल शक्ति
आठवां और नवा दिन विष्णु शक्ति का प्रतीक है।
9 दिन में 9 संयोग का मिलेगा विशेष फल
शारदीय नवरात्र का प्रारंभ रविवार को हस्त नक्षत्र में हो रहा है। इस बार 9 दिन के व्रत में 9 अद्भुत संयोग मिलेगा। यह अद्भुत संयोग हैं-
पहला संयोग
सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और द्विपुष्कर योग मिलेगा।
दूसरा संयोग- तिथियों में क्षय नहीं
तीसरा संयोग- नवरात्र के पहले दिन शुक्र का उदय चौथा संयोग- नवऱात्र में दो रविवार और दो सोमवार पड़ेंगे ( सोमवार का दो होना शुभ माना जाता है) पांचवा संयोग- 26 नक्षत्रों में तेरहवें नक्षत्र हस्त से नवरात्र का प्रारम्भ
छठा संयोग-नवरात्र के दूसरे और चौथे दिन अमृत सिद्धि योग
सातवां संयोग- नवरात्र में दो रवि योग
आठवां संयोग- चार सर्वार्थसिद्धि योग ( 29 सितंबर, 2, 6 और 7 अक्तूबर)
नौवां संयोग-भगवती की हाथी की सवारी।
घट स्थापना मुहूर्त-
आश्विन प्रतिपदा ( 29 सितंबर) को घट स्थापना का समय इस प्रकार रहेगा-- प्रात: 6.17 से प्रात: 7.40
- पूर्वाह्न 11.48 से 12.35 बजे तक
- अभिजीत मुहूर्त- 6.01 से 7.25 बजे तक
- अन्य मुहूर्त-
- चंचल-7.48 से 9.18 प्रात:
- लाभ- 9.18 से 10.47 प्रात:
- अमृत- 10.47 से 12.17 अपराह्न
- शुभ लाभ- 01.47 से 3.16 अपराह्न
- 06.15 से 7.46 सायंकाल
रात्रि अमृत चौघड़िया-
7.46 से 9.16 बजे तक ( यह समय केवल साधकों के लिए है। या उनके लिए जो काली या पीतांबरा देवी के उपासक हैं)श्रेष्ठ मुहूर्त
29 सितंबर को प्रात: 9.56 से स्थिर लग्न प्रारम्भ हो जाएगा। जो बारह बजे तक रहेगा। इसी समय शुभ चौघड़िया मुहूर्त भी मिलेंगे। इसलिए, यह समय श्रेष्ठ है। सुबह 6.16 से 07.40 बजे तक का समय कलश स्थापना के लिए श्रेष्ठ है।
किस दिन क्या संयोग -
29 सितंबर- सर्वार्थसिद्धि व अमृत सिद्धि योग1 अक्टूबर- रवि योग
2 अक्टूबर- रवि योग व सर्वार्थ सिद्धि योग
3 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग
4 अक्टूबर- रवि योग
6 अक्टूबर- सर्वार्थ सिद्धि योग
7 अक्टूबर- सर्वार्थ सिद्धि योग व रवि योग
किस दिन की किसकी पूजा-
29 सितंबर- शैलपुत्री30 सितंबर- ब्रह्मचारिणी
01 अक्तूबर- चंद्रघंटा
02 अक्तूबर- कूष्मांडा
03 अक्तूबर- स्कंदमाता
04 अक्तूबर- कात्यायनी
05 अक्तूबर- कालरात्रि
06 अक्तूबर- महागौरी
07 अक्तूबर- सिद्धिदात्री
08 विजयदशमी, देवी प्रतिमा विसर्जन
इस मंत्र से करें घट स्थापना-
-ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
-ऊं दुं दुर्गायै नम:
-ऊं ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
-ऊं श्रीं ऊं
-ऊं ह्लीं ऊं ( पीतांबरा या दश महाविद्या उपासक उपासक)
( इनमें से किसी भी मंत्र को पांच से सात बार पढ़कर कलश स्थापना कर सकते हैं)
कैसे करें घट विस्थापन-
-एक जटाजूट नारियल-5 या 3 लोंग के जोड़े
-एक सुपारी
-जल पूरा भरा हुआ
-उसमें थोड़ी पीली सरसों, काले तिल भी डाल दें।
-एक सिक्का
पहले कलश पर स्वास्तिक बनाएँ-
- कलश पर कलावा बाँधे, 5 7 या 9 घेरे में इतने ही घेरे पर नारियल में चुन्नी बाँधकर कलावा बाँध दें।
- याद रखें, एक पान भी नारियल पर लगा दें।
- अब खड़े होकर माँ से प्रार्थना करें कि भगवती हमारे घर में सुख शांति का वास हो। यह प्रार्थना नारियल को माथे पर लगाकर करनी है।
- बारी बारी घर के सभी लोग माथे पर लगाएँ। फिर यह मंत्र पढ़ते हुए कलश स्थापना कर दें...ॐ ऐं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
सावधानी रखें-
- कलश स्थापना बैठकर न करें।
- कलश स्थापना से पहले गणपति, शिव जी का ध्यान अवश्य करें।
- यदि गुरु दीक्षा ली हुई हो तो सर्वप्रथम गुरु का ध्यान करें। ध्यान का क्रम यह रहेगा...
- गुरु, गणेश जी, शंकर जी, देवी दुर्गा, विष्णु जी, ठाकुर जी, नवग्रह, भैरों बाबा और फिर हनुमानजी। तदुपरांत फिर तीन देवियों का ध्यान। फिर मंत्र पढ़ते हुए कलश स्थापना।
- अकेले ध्यान करके कलश स्थापना न करें। क्योंकि नवरात्र से सभी देवी के गण का आगमन हो जाता है।
- यदि प्रतिपदा को कलश स्थापना नहीं कर पाएं तो 2, 5, 7 नवरात्र को भी कलश स्थापना हो सकती है। लेकिन यह पूर्णकालिक नहीं होगा।
- यदि कोई व्रत किसी कारण से रह जाये तो देवी एकादशी और देवी चतुर्दशी को पूरा कर सकते हैं। प्रतिपदा से चतुर्दशी पर ही नवरात्र पूर्ण होते हैं। 9 रात्रि हैं और पांच अहोरात्रि। यह अन्य रात्रियों से अलग हैं।
विधि-2
श्रीफल स्थापना-
जिन लोगों को कहीं आना जाना हो वे श्रीफल कलश पर स्थापित कर सकते हैं। इसमें जल नहीं होगा। सामग्री यह होगी-
- सवा मुट्ठी पीले चावल साबुत
- दो हल्दी की गांठ
- पांच कमलगट्टे
- पांच लोंग के जोड़े
- एक सिक्का
- कलश पर चुन्नी कलावा बांधकर कलश स्थापना कर सकते हैं।
- चाहें तो अगले नवरात्र तक इसको स्थापित रख सकते हैं।
विधि-3
- यह सब भी न कर सकें तो एक कटोरी में एक सुपारी और 5 लौंग के जोड़े रख दें।
कौन सा पाठ करें
अथवा
- देवी पाठ-समूर्ण श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ करें अन्यथा देवी कवच, अर्गला, कीलक करके देवी सूक्तम और सिद्ध कुंजिका का पाठ करें।
अथवा
- सप्त श्लोकी, सिद्ध कुंजिका और देवी सूक्तम कर लें
अथवा
- तीन बार सिद्ध कुंजिका
अथवा
- 5 बार देवी सूक्तम
अथवा
- 5, 8, 11 वाँ अध्याय
- अर्गला स्त्रोत 3 बार
नोट करें
वैसे कोशिश करें कि कवच और अर्गला और कीलक मिस्ड न हो। सिद्ध कुंजिका सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का सार है।
विशेष लाभकारी पाठ-
नील सरस्वती स्त्रोत 3
1 बार अर्गला
1 सिद्ध कुंजिका या देवी सूक्तम
ग्रह दशा में सप्त श्लोकी दुर्गा का पाठ। सम्पुट...नवग्रह मंत्र। जैसे आप पर शनि की महा दशा है तो पहले शनि मंत्र पढ़ें...ॐ शं शनिश्चराये नमः...फिर देवी मंत्र। इसी तरह बाकी महादशा में भी करें।
जप
किसी भी मंत्र की उतनी ही माला करें, जो प्रतिदिन कर सकें। कम ज़्यादा न हों।
ज्योति स्थापन।
कपूर से प्रज्ज्वलित करें।
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